Wednesday, June 29, 2016

Reincarnation and Karma (Punarjanam)

       पुनर्जन्म और कर्मविपाक

पिछले जनम में किया हुआ या अगले जनम  में क्या होगा  इसके बारे में कभी हमने अधिक सोचा नहीं। समस्याओंके समाधान के लिए पूजा-पाठ करते देखा है , कभी-कबार पिछले जनम का किया हुआ पाप इस जनम में भोग रहे है ऐसा कहते हुए भी सुना है, या ऐसा खुद कहा है. क्या वस्तुत: यह सब सत्य है? क्या अच्छा कर्म पाप को नष्ट करता भी है ? तो चलो हम उसे जाननेकी कोशिश करेंगे क्या कहते है हमारे शास्त्र और बुजुर्ग लोग !


"पुनरजनम के सत्य को जैन , हिन्दू  तथा  बौद्ध धर्म  के अनुयायी इस बात को मानते है".
इस धरतीपर कोई भी व्यक्ति सुखी या दुखी नहीं हर एक के जीवन में  सुख-दू: का मिलाप है. परन्तु ऐसे अनेक लोग है जो अच्छे कर्म करकर भी दुःख झेल रहे है और उसी तरह बुरे कर्म करनेवाले मज़े में है ऐसा क्यों ? इस बात का जवाब किसी के पास भी नहीं जब इन बातोंपर चर्चा होती है तब अनेक सवाल और शंकाएं मन में सैलाब लाती है।  तब  जाकर पुनरजनम तथा पिछले जनम में किए गए पाप कर्म की बात आती है उसे "कर्मविपाक" कहते है.
ऋग्वेद में पुनरजनम के बारे में कल्पना की गयी है. कठोपनिषद , बृहदारण्यक , छान्दोग्य उपनिषत, और कौषीतकि उपनिषत में पुनरजनम के विषय पर विस्तृत रूप से जानकारी दी गयी है।
Punarjanam, Karma, Deed, punarjanma


                        वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोपराणि !
                            तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देहि !!
भगवत गीता में कहा गया है जैसे  मनुष्य अपने पुराने वस्त्र को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है उसी तरह आत्मा भी पुराने देह को छोड़कर नए देह में प्रवेश करती है। ऐसे कहते सुना है दादा-दादी की मृत्यु होने के बाद कहते है वो फिरसे पोते या बेटे के रूप में जनम लेते है अर्थात आत्मा कभी भी रूप धारण कर सकती है शरीर नहीं.
मन में सवाल उठता है पुनरजनम की आवश्यकता क्या है ? उसका जवाब कुछ ऐसा है जिसे हम अंधविश्वास मानते है. कहा जाता है की अगर पिछले जनम में कुछ काम अधूरा रह गया होतो, या किए हुए पाप की शिक्षा नहीं पाई होतो, या कुछ करना बाकी होतो इस कार्य को पूर्ण करनेके लिए तथा किए गए पाप कर्म का फल भोगनेके लिए पुनरजनम होता है इसे कर्म विपाक कहते है. "कर्म" अर्थात कार्य, "विपाक" अर्थात परिणाम या फल.  जो तुमने बोया है वही उगेगा। जो कर्म किया है उसका फल भोगनाहि पड़ेगा.
कुछ कर्म की शुरुवात हो चुकी होती है , या कुछ फल की शुरुवात होने वाली है, या कुछ कर्म के फल इस जनम के हो सकते है. विस्तृत रूप से जानकारी नहीं होने से मनुष्य इस सिद्धांत को जाननेमें असमर्थ रहा है. परन्तु कुछ तथ्यों के आधार पर और कही-सुनी पर कुछ तथ्य सामने आये है. कर्मो को तीन विभागोंमे बाटा है!

. संचित:- किसी भी मनुष्य द्वारा  प्रारम्भ से लेकर अंततक किया गया  कर्म, जो पिछले जनम का और इस जनम का किया गया मिलाप. इसको अदृश्य या भूतपूर्व कहते है. क्योंकि कर्म करते समय वह दिखता है परन्तु तत्पश्चात उसके परिणाम पीछे रह जाते है.

. प्रारब्ध:- जो संचित माने जमा करके रखा है उसका फल एक ही बार नहीं भोग सकते क्योंकि उनकी प्रक्रिया मिश्र होती है जैसे की सुख-दुःख। जिस कर्म के फल हम भोग रहे है उसे ही प्रारब्ध कहा जाता है.

. क्रियमाण:- प्रारब्ध कर्म का फल भोगते हुए भी हम इस जन्म के कर्म  करते रहते है. इस कर्म को क्रियमाण या वर्तमान कर्म  कहते है जो बात ऊपर कही गयी है अगर हमारे द्वारा किए गए कर्म का फल उसी क्षण मिलता है तो हमारे कर्म-भोग उसी जन्म में समाप्त हो जाते है अगर ऐसा नहीं होता है तो वह कर्म आप के खाते में जमा होता है अगले जन्म के लिए. ऐसा चक्रव्यूह चलते रहता है पिछले जन्म का इस जनम में और इस जनम का अगले जनम में तो हमें इससे छुटकारा है भी या नहीं ?ऐसे सवालोंसे मन उदास होता है.  इससे छुटकारा है अगर हम कर्म नहीं करेंगे तो कर्म का फल नहीं और नाही पुनर्जन्म. अर्जुन ने भी यह सवाल उठाया था? भगवान कृष्ण कहते है कर्म से कभी छुटकारा नहीं है जबतक  जी रहे है तबतक कर्म करनाही पड़ेगा अगर फिर भी मन को शांति नहीं है तो तब खुद भगवान मार्ग दिखाएंगे इसी कर्म-बंधन रहस्य को जाननेके लिए ही गीता पढ़ना जरुरी है या पढ़नी चाहिए.

अगर कर्म नहीं करेंगे तो उसका फल कैसे पाओगे? अपनी कामना को पूर्ण करनेके लिए कर्म करना जरुरी है. जब परमात्माने सृष्टि की रचना की वह कुछ नियम -कायदे भी लागु किये उसमे कभी बदलाव नहीं किया. अगर आग में हाथ डालनेसे हाथ जल जाता है यह सब को पता है और यह नियम सबको लागु होता है. उसी तरह सज्जन हो या दुर्जन अपना किया कर्म भोगना ही पड़ता है. भगवान ने हमें बुद्धि दी है उसका उपयोग कैसे करना है यह हमारे ऊपर निर्भर करता है. हम बुरे कर्म करके बाद में भगवान पर क्रोधित होना या भगवान को दोष देना यह गलत बात है. जो खुद किया है उसे खुद को ही भोगना पड़ेगा उसे  किसी  को दे नहीं सकते या किसीसे ले नहीं सकते.
अब जाके कर्मविपाक की बात आती है अगर हमने सत्कर्म किया है या कर रहे है तो उसके फलस्वरूप हमारा पापकर्म  नष्ट हो जायेगाजी नहीं ! जो आपने सत्कर्म किया है उसका फल तो अगले जन्म में या आनेवाले समय में मिलेगा , परन्तु जो पापकर्म किया है उसका तो भोगनाहि पड़ेगा. जब आप सत्कर्म करेंगे उस पूण्य के प्रभाव से आप को और अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है और आप  के खाते में अच्छे कर्म की राशि बढ़ती है.

ज्योतिष्य शास्त्र का कहना

" राहु" यह ग्रह वर्तमान कर्म का कारण होनेसे, "शनि" यह संचित कर्मका कारण है. और " केतु" यह ग्रह प्रारब्ध     ( विधि) का कारण होनेसे हम विधि को नहीं रोक सकते।  केतु हमें कर्म भोगनेपर मजबूर करवाता है.
परमात्मा दयालु होने से उसने मनुष्य को पाप कर्म के फल से छुटकारा पाने के लिए प्रायश्चित्त करनेके लिए एक अवकाश दिया है. "परिहार प्रायश्चित्त" या दैवी साधना" भी कहते है. मनुष्य इस परिहार से तकरीबन 95% कर्म भोग मिटा सकता है. केवल 5 % कर्म भोगनाहि पड़ता है. इसे ही " केतु' ग्रह से मिला प्रारब्ध कर्म या विधि कहते है.
दैवी साधना या पूजा-पाठ के विषय में दो प्रकार के मार्ग बताये गए है !
. सदाचरण:- दान-धर्म करना, प्यासे या भूके को खाना खिलाना, जो कष्ट में है उनको मदत करना, गरीब लोगोकी सेवा करना, अहिंसा का पालन करना इत्यादि...
. ग्रहदोष उपाय:- हर एक मनुष्य के जन्म कुंडली के अनुसार शुभ या अशुभ राशि और ग्रह होते है. जन्म नक्षत्र के अनुसार उनकी आराधना या पूजा-पाठ करना. किए गए पूजा पाठ से आत्मशक्ति बढ़ती है और उससे मानसिक तथा शारीरिक लाभ होता है जैसे की स्वास्थ्य, धैर्य , उत्साह, शक्ति, और मनोबल की प्राप्तिअगर इस साधना को सदाचरण की साथ मिल जाए तो जीवन में आनंद ही आनंद. जैसे सुख की खान मिल गयी हो.