Monday, July 18, 2016

Important's Of Guru Poornima

Guru Purnima is an Indian and Nepalese festival dedicated to spiritual and academic teachers. This festival is traditionally celebrated by Hindus, Jain's and Buddhists, to pay their respects to their teachers and express their gratitude.

               गुरु पूर्णिमा का महत्व

                  जानिए गुरु तथा गुरु  पूर्णिमा की विशेषता

गुरु पूर्णिमा जिसे आषाढ़ पूर्णिमा भी कहा जाता है जो जुलाई या अगस्त महीने में आती है जिस दिन चन्द्रमा पूर्ण होता है, हमें इस दिन का महत्व पता करते हैं। लेकिन गुरु पूर्णिमा के विवरण में जाने से पहले हमें गुरु की महानता तथा उनकी महत्वता के बारे में जानना अनिवार्य है . हिंदू धर्म में गुरु अर्थात शिक्षक ऐसा अर्थ होता है, जो हमें जीने की राह दिखाए जो हमें ज्ञान प्रदान करता है वह गुरु कहलाता है. हिंदू धर्म में Guru को भगवान का दर्जा दिया गया है।


                     गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर : !
                गुरु:साक्षात परब्रम्हा तस्मै श्री गुरुवे नम: !!
अर्थात :- गुरु ही ब्रम्हस्वरूप है , गुरु ही विष्णु है और गुरु ही शिव स्वरुप कहलाता है. गुरु ही स्वयं परब्रम्ह स्वरुप है, जो परमपिता परमात्मा है उस Guru को मेरा सादर प्रणाम।
इस महान श्लोक से हमें ज्ञात होता है की गुरु की महिमा अपरम्पार है. कहनेको तो गुरु के विषय पर बहुत कुछ है परन्तु लेख की अभिवृद्धि के भय से अल्प में ही अधिक कहनेका प्रयास हमने किया है.
हम इस लेख में चर्चा करेंगे क्या गुरु पूर्णिमा की विशेषता के बारे में यह केवल पंडित, पुजारी , ब्राम्हण या वैदिक विद्यार्थियों के लिए ही सीमित है ?या सबके लिए.
 यह एक ऐसा त्योहार है कि सभी गुरुओं के लिए समर्पित है और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक.  क्यों की यह त्यौहार अपने -अपने गुरु या शिक्षक वर्ग को धन्यवाद कहनेका दिन है जिन्होंने हमें जीने की कला सिखाई , जिन्होंने हमें संसार के हर एक ज्ञान से परिचित किया, जिनकी दी गयी शिक्षा से हम आज इस जीवन में अपने मुकाम तक पहुँच पाये है. परन्तु प्राय: विशेषत: यह दिन दोनों हिंदुओं और बौद्धों द्वारा मनाया जाता है।

Guru, Rishi, Vedvyas, Muni
Rishi Vedvyas

हिंदुओं आध्यात्मिक दैविकता से गुरुओं के लिए सर्वोपरि महत्व देते हैं.  जैसे पूर्णिमा का चंद्रमा अपने प्रकाश से सारे विश्व को प्रकाशमान कराता है ठीक वैसे ही एक गुरु विद्यार्थिके जीवन में ज्ञान का प्रकाश लेकर आता है, और यह समय वर्षा ऋतु का भी होता है जो किसानोंको नयी फसल उगाने की उससे धान्य-प्राप्ति की मन में आशा की किरण जगाता है, इसके अलावा हम सभी इस बात से ज्ञात है की  हमारे अगले कक्षा में जाने के लिए तथा शिक्षा में स्नातकोत्तर पदवी प्राप्त करके जीवन में आगे बढ़ने में इसी माह में हम गुरुकुल या शाला, Collage में प्रवेश लेते है. जो की गुरु पूर्णिमा July अथवा अगस्त महीने में आती है.  ऐसे कई अनेक महत्वों से भरी यह पूर्णिमा  गुरु पूर्णिमा के नाम से जानी जाती है।

व्यास जी  के बारे में:-

इसी दिन वेद व्यास का जन्मदिन होने के कारण गुरु पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा  के नाम से भी जानी जाती है, यह दिन महान ऋषि वेदव्यास  को याद करने के लिए हैयह उनकी  दिव्यता और पात्रता को सम्मानित करने के लिए मनाया  जाता है .पवित्र यमुना नदी में एक द्वीप पर वर्ष 5000 साल पहले वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, आषाढ़ पूर्णिमा पर उनके पिता ऋषि पाराशर और माता सत्यवती थे. वह अपने पिता के साथ-साथ वासुदेव और सनक-सनन्दन  अन्य महान ऋषियों के अधीन अध्ययन किया.  इसके बाद उन्होंने अपने विद्यार्थियों को वेदों पढ़ाया, पाण्डुराजा - पांडवोके पिताधृतराष्ट्र-कौरवों के पिताविदुर जी - जो विदुर्नीतिके रचयिता है  और  शुकदेव जी- जो राजा परीक्षित जिनका उल्लेख श्रीमद भागवत में आता है। यह प्रसिद्ध चार लोग वेदव्यास जी के पुत्र थे. व्यास जी ने वेदो की रचना तथा उनका विभाजन किया इस लिए वो वेदव्यास नाम से जाने जाते है !


उनके द्वारा लिखित शास्त्र कुछ इस प्रकार हैं:

चार वेद ( ऋग्वेद , यजुर्वेद सामवेद तथा अथर्ववेद )
अठराह पुराण
महाभारत
ब्रम्हसूत्र
गीता ऐसे अनेक ग्रन्थोकि रचना की. जो उनकी इस देन से ही हमारी हिन्दू परंपरा जीवित है.

गुरु-शिष्य परंपरा:-

गुरु या शिक्षक भारतीय परंपराओं और संस्कृति में पूजनीय रूप है वह ज्ञान जो कि  केवल किताबें पढ़ने के द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता उसे गुरु द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है. जो की वेदव्यास पहले गुरु बन चुके है उनसेहि यह शिक्षा की प्रथा प्रारम्भ हुयी.
गुरु-शिष्य परम्परा भारत की मौखिक परंपरा की आत्मा है, और गुरु - शिष्य के बीच रहने और सीखने के रिश्ते का प्रतीक हैं। महान भारतीय संत के युग से विकसित हो रहा है, गुरु-शिष्य परंपरा को प्रबल शिष्य की पूरी भावनात्मक, बौद्धिक और आध्यात्मिक आत्मसमर्पण का प्रतीक है.
गुरु और शिष्य परम्परा भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है। भारत में कई कहानियों कि गुरु-शिष्य परम्परा की परम्परा को आज भी प्रचलित  है .  गुरु पूर्णिमा भारतीय परंपराओं का एक हिस्सा रहा है और यह अभी भी बना हुआ है. कहा  जाता है की गुरु के बिना यह संसार अधूरा है , गुरु एक ग्रह भी है जो देवोंके गुरु बृहस्पति से जाने जाते है. "गुरु" शब्द का अर्थ यह है की जो हमें अज्ञान के अंधकार से बाहर निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले चलता है वह गुरु कहलाता है. हमारे यहाँ हजारो सालों से गुरु-शिष्य परंपरा चलते रही है.

कुछ प्रसिद्ध गुरु-शिष्योंकी की जोड़ी कुछ इस प्रकार है 

सांदीपनी- भगवान कृष्ण, सुदामा
विश्वामित्र- राम, लक्ष्मण
परशुराम- कर्ण
द्रोणाचार्य- अर्जुन
जनक-  याज्ञवल्क्य
शुक्राचार्य- जनक
आदी शंकराचार्य -  उनके चार शिष्य  पद्मपादाचार्य , सुरेश्वराचार्य , तोटकाचार्य  और हस्तमलकाचार्य
चाणक्य - चन्द्रगुप्त मौर्या
श्री रामदास स्वामी - शिवाजी महाराज
श्री रामकृष्ण परमहंस - स्वामी विवेकानंद
ऐसे अनेक गुरु-शिष्योंकी की जोड़ी परम्पराका प्रतीक है यह गुरु पूर्णिमा. गुरु का वर्णन कीतना ही करो वह अपूर्ण ही होगा , गुरु महिमा का वर्णन करनेके लिए यह जन्म अधूरा पड़ेगा. आधुनिक युग में इस त्यौहार का रुख बदल रहा है. हम सबको इस त्यौहार के दिन अपने गुरु को या शिक्षक को जरूर कृतज्ञता देने पड़ेगी क्यों की उनकी कृपा से ही हमें ज्ञान की राशि मिली. कहते है मनुष्य पर तीन ऋण होते है. देव ऋण, मातृ पितृ ऋण और ऋषि ऋण अर्थात गुरु ऋण जिसे हम कभी चुका नहीं सकते. अगर चुका सकते है तो उनकी सेवा करके।