Tuesday, February 12, 2019

Worship क्यों हम भगवान् के मूर्ति को पूजते है ?

                                    Kya hai murthi Puja?


इस Article में 
ईश्वर का स्वरुप
भगवान् ki पूजा
क्या है यह पूजा ?
पूजा का विधान
मूर्ति Puja
परा पूजा
मानस पूजा
पंचोपचार पूजा
16 उपचार पूजा और पूजा से लाभ
इन विषय के बारे में जानकारी पढ़ेंगे Read more....

भगवान को  शायद ही किसी ने देखा होगा. 99% लोगों ने Bhagwan को नहीं देखा है. कहते है की भगवान् हरेक में बसते है. भगवान् को देखा नहीं जा सकता उसकी होने की अनुभूति की जा सकती है. कैसे होते है भगवान् ?




सत्यं ज्ञानमनंतं ब्रम्हा, आनंद रूपं अमृतं यद्विभाति !
शान्तं शिवमद्वैतं, शुद्धं पापविद्धं  !!
अपाणि पादो जवनो गृहीतां, पश्यति चक्षुः स शृणोत्य कर्ण: !
सवेति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता, तमाहुः अग्रयं पुरुषं महान्तं !!
न सत्य प्रतिमा अस्ति !! 

Meaning:- भगवान् को हम कहिबार परमात्मा कहते है. परमात्मा ज्ञान का  सत्यस्वरूप होकर अनंत है. जो आनंदरूप से अमर अनादि है. उसके जैसा कोई नहीं (He is the only one) वह शुद्ध और पापरहित है!
उस परमात्मा को हात-पैर नहीं है फिर भी वह स्वीकार करता है और भक्तो के पुकार को सुनकर दौड़कर आता है. उसके नयन चक्षु नहीं है फिर भी वह देख सकता है और कान नहीं है फिर भी वह सब कुछ सुन सकता है. वह सब जानता है परन्तु कोई भी उसे जान नहीं सकता उसे हम सब आदि पुरुष, परमेश्वर या देवाधिदेव ऐसा कहते है. उसका सत्स्वरूप और किसी को नहीं है. ऐसा हमारा प्यारा परमेश्वर है. तब हम उसे देखने के लिए उसका दर्शन पाने के लिए उसकी प्रतिमा बनाकर उस Idol को ही भगवान् मानकर अपनी भक्ति Faith और ज्ञान Knowladge के आधारपर उसकी पूजा करते है उसमे ही हमारा आनंद है. कुछ ऐसा ही कहती है परा पूजा !

Kya hai murthi Puja?
Nirakar Murthi

परा पूजा

पूर्णस्या आवाहनं कुत्र सर्वाधारस्य चासनं ! स्वछस्य पाद्यं अर्घ्यं च शुद्धस्य आचमनं कुत:!!
निर्मलस्य कुत: स्नानं वस्त्रं विश्वोदरस्य च ! निरालम्बस्य उपवीतं पुष्पं निर्वासनस्य च !!
निर्लेपस्य कुतो गन्धं रम्यस्याभरणं कुत: ! नित्य तृप्तस्य नैवेद्यस्ताम्बूलं च कुतो विभो: !!
प्रदक्षिणा अनंतस्य कुतो नति: ! वेदवाक्यै: अवैद्दस्य कुत स्तोत्रं विधीयते !!
स्वयं प्रकाशमानस्य कुतो नीराजनं विभोः ! अन्तर्बहिश्च पूर्णस्य कथमुद्रासनम भवेत् !!
एवं परापूजा सर्वावस्थासु सर्वदा ! एक बुध्यातु देवेश विधैव ब्रम्ह वित्तमैः !!

इस परापूजा में कहा गया है की जो भगवान् निराकार है, निर्गुण है, जो हर तरफ है. जो अनंत है जिसे कोई आकार नहीं है, जो दिखता है फिर भी वह नहीं दिखता, जो सुगंध में बसा है, जो नित्यतृप्त है, जो निर्मल serene है, जो निर्वास है, जो भगवान् अद्वितीय Unique है, जो स्वयं प्रकाशित है,जो अणु-रेणु में बसा है, जो सब का मालिक है, जो हम सब का आधार है उस परमात्मा को भला मै  क्या दे सकता हु, भला मै क्या समर्पित कर सकता हूँ ? भला मै ऐसी कोनसी वस्तु या उपहार दे सकता हु जिसे मैंने बनाया है या जो मेरा है. Mere Pass ऐसा कुछ नहीं है जो मै उसे दे सकता हूँ.  इसे ही परापूजा कहते है जो ब्रम्हज्ञानी बड़े-बड़े साधु-संत महर्षि लोग एकचित्त होकर करते है.


मानस पूजा

जो पूजा 5 तत्वों से या 5 तत्व 1. अग्नि 2. वायु 3. पृथ्वी  4. आकाश और जल इन पञ्च महाभूतों को साक्षी मानकर अर्थात इनकी कल्पना कर परमात्मा को ५ उपचार समर्पित किये जाते है जैसे की  *पृथ्वी तत्व से गंध, *आकाश तत्व से पुष्प (फूल), *वायु तत्व से धुप (अगरबत्ती), *अग्नि तत्व से दीप और *जल तत्व से नैवेद्य (भोग). 5 तत्वों को आवाहन करके अपने और समस्त चराचर में प्राणादि 5 Elements बसे है उनका ध्यान करकर परमात्मा की पूजा की जाती है जिसे हम मानस पूजा कहते है.
कहाँ और देखा गया है की सबसे श्रेष्ठ परापूजा को कहा जाता है और मध्यम मानस पूजा को कनिष्ठ प्रतिमा पूजा को फिर भी मनुष्य Pratima पूजा ही करता है क्यों की.......


Puja
Puja

मूर्ति पूजा

प्राणादिभिः अनंतैश्च भावैरेतैर्विकल्पित: ! 
मायैषा तस्य देवस्य यया सम्मोहितै: स्वयम !!
यं भावं दर्शयेत तस्य तं भावं स तु पश्यति ! 
तंच अवति भुत्वासौ तद्गत: समुपैति तम !!

Meaning:-  परमात्मा प्राणादि तत्वों से अनेक रूप में बसता है उसके अनेक रूप है. कहियोने मन से उसकी कल्पना की है, कहियों के छवियो में है, यह Sabkuch उसके द्वारा रचायि गयी माया का नजारा है. कभी-कबार इस माया से वह भी मोहित हो जाता है. ईश्वर ऐसा है, शायद वैसा होगा, ऐसा ही है, ऐसा कहते हुए गुरु, साधु, संत महंतो को देखा है जिस किसी ने भी भगवान् का वर्णन किया है शायद उसे वैसा ही दिखाई दिया होगा. वह ईश्वर  उस रूप में आकर अपने भक्तो का रक्षण करते है ऐसे Kehate Suna Hai और भक्तो के नेत्रों में वह झलक देखि है. जो जैसा भजता है उसे वैसा ही फल मिलता है ऐसा अनेक श्रद्धालु कहते है और इसमें विश्वास रखते है. इस अवस्था में लोग भगवान् की मूर्ति बनाकर उसकी अनेक उपचार या 16 उपचारोंसे पूजा करते है.

षोडशोपचार पूजा (16 उपचार) Treatment


१. आवाहन:- ईश्वर को मूर्ति में या किसी विशेष स्थान पर आवाहित करना/  Convene
२. आसन:- विराजमान होने के लिए आसन या सिंघासन देना
३. पाद्य:- पाव धोने के लिए जल की व्यवस्था करना
४. अर्घ्य;- हाथ धोने के लिए पानी देना
५. आचमन:- मुँह धोने के लिए पानी समर्पित करना
६. स्नान:- नहाना अगर भगवान् की मूर्ति होतो मूर्ति को स्नान डालना
७. वस्त्र:- भगवान् को नए कपडे पहनाना
८. उपवीत:- जनेऊ डालना या दूसरा वस्त्र समर्पित करना
९. गंध:- चन्दन का टिका लगाना
१०. पुष्प:- फूल (Flowers) चढ़ाना
११. धुप:- अगरबत्ती या धूप दिखाना
१२. दीप:- दिया जलाकर उसकी ज्योत से ईश्वर की आरती करना
१३. नैवेद्य (भोग):- भोज की थाली अर्पित करना या भोग चढ़ाना
१४. प्रदक्षिणा:- मूर्ति की परिक्रमा करना अगर मूर्ति नहीं हो तो "आत्मा" अपने भीतर बसे हुए भगवान् की परिक्रमा करना जिसे आत्म प्रदक्षिणा कहते है
१५. नमस्कार:- अपने अहं को त्यागकर भगवान् के चरणोपर नतमस्तक होना ही नमस्कार कहलाता है.
१६. विसर्जन:- पूजा की समाप्ति करना. जिसे आवाहित किया जाता है उसे विसर्जन भी करते है. जो अधिकतर काम्य कर्म में देखा गया है.

स्वतन्त्र संप्रदाय के अनुसार पूजा के उपचार अलग-अलग होते है हर एक की भक्ति Alag होती है. कोई दूध चढ़ाता है तो कोई जल. इससे पूजा के उपचार में बदलाव Hoga परन्तु जो विधान बताया गया है उसमे कोई बदलाव नहीं होता In the present time यह ऊपर दिए गए 16 उपचार ही अधिक पूजा में उपयोग किए जाते है.


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