Saturday, May 25, 2019

6 Greatest kings who ruled the world


पुराण प्रसिद्ध सबसे श्रेष्ठ चक्रवर्ती  

भारत भूमि पर अनेक राजा महाराजाओं ने जन्म लिया है. उन राजाओ में कोई महाराजा बना तो कोई चक्रवर्ती बना.
पुराण के अनुसार कहा जाता है की यह पृथ्वी 6 चक्रवर्ती राजाओ से परिपालित की गयी है चक्रवर्तीओं की गणना सामान्य राजाओ में नहीं की जाती. चक्रवर्ती का मतलब जो पुरे भूमण्डल को अपने अधीन कर चूका हो,जिसकी कीर्ति चारो ओर फैली हुई हो वह King चक्रवर्ती कहलाता है !

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1. हरिश्चंद्र
हरिश्चंद्र राजा सूर्यवंशी है. उन्होंने अपने जन्म से सत्य का पालन किया, तेजोमय श्रेष्ठ चक्रवर्ती. त्रिशंकु और सत्यव्रते नामक दम्पति से हरिश्चंद्र का जन्म हुआ. Harishchandra Raja  सत्य का पालन करने के लिए अनेक कष्ट और दुःख को सहकर अंत में सत्य पर विजय हासिल की इस सत्याचरण से  महर्षिओँ  के अनुग्रह से देवराज इंद्र के राज्य का आधा राज्य और सिंहासन प्राप्त किया और त्रिकरण शुद्धि से सत्य का पालन करना  साध्य है इस बात को पुरे विश्व को दिखानेवाला एकैक महान व्यक्ति राजा हरिश्चंद्र !
राजा हरिश्चंद्र का चरित्र श्रीमद भागवत और अनेक पुराणों में देखने को मिलता है. कहा जाता है हरिश्चंद्र का चरित्र पढ़ने से या श्रवण करने से सब दुःख और पाप मिट जाते है.

2. पुरूरव
अत्रि महर्षि का पुत्र चंद्र. चंद्र का बेटा बुध और बुध का पुत्र ही पुरूरव! कहा जाता है की पुरूरव ने 100 अश्वमेध यज्ञ करकर हिमाद्रि श्रृंग पर वैभव से विराजित थे. केशिये और अनेक राक्षस पुरूरव के सेवा में थे. पुरूरव के सुंदरता को देखकर इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी मोह वश होकर पुरूरव से शादी कर ली पुरूरव से देवेंद्र हरदिन मिलते थे. पुरूरव के बारे में पद्म पुराण और महाभारत में वर्णन किया गया है.

3. कार्तवीर्य
चन्द्रवंश के कृतवीर्य राजा के पुत्र ही कार्तवीर्यार्जुन नाम से प्रसिद्ध होकर विंध्य पर्वत के समीप माहिष्मती नामक नगर में राज्य का पालन करते थे. कुल गुरु महर्षि गार्ग्य के आज्ञानुसार श्री दत्तात्रेय मन्त्र का उपदेश प्राप्तकर भगवान् दत्तात्रेय की उपासना कर दत्तात्रेय के अनुग्रह से युद्ध में विजयत्व और 1000 बाहु का वर प्राप्त किया. ऋषि वसिष्ठ के श्राप के कारण भगवान् परशुराम के हातो कार्तवीर्य वीरगति को प्राप्त हो गए. देवी भागवत, वायु पुराण, मार्कण्डेय पुराण और महाभारत में कार्तवीर्य राजा का उल्लेख मिलता है. कहा जाता है अगर किसी मनुष्य की कोई वस्तु या द्रव्य खो जाता है या कोई सामान चोरी को जाता है, तो अगर वह मनुष्य इस कार्तवीर्य श्लोक का जाप या नामस्मरण करता है तो वह वस्तु शीघ्र ही उसे मिलती है.
कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्रवान !
तस्य स्मरण मात्रेण गतं नष्टं लभ्यते !!

4. नळ चक्रवर्ती
निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र! विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती जिसका विवाह नळ से हुआ. नळ और Damyanti की कहानी से हम सब परिचित है.
नळ एक महान राजा होते हुए भी उनको अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा. घने जंगल में भटकना पड़ा फिर भी अपने मनोबल और सहनशीलता से अपना राज्य पुनर्स्थापित कर एक महान Chakravarthi बन गए. 
जो कोई भी मनुष्य नळ चरित्र का पठण या श्रवण करता है उस व्यक्ति की शनि पीड़ा दूर होती है ऐसा वरदान खुद शनि देव राजा नल को देते है इसलिए पांडव जब वनवास भोग रहे थे तब ऋषि-मुनि नळ चरित्र पांडवो को सुनाया था ताकि उनको मनोबल मिले और वनवास के कष्ट से मुक्ति मिले. नल महाराज बहुत बड़े रसोइया थे. आज भी नळपाक शब्द प्रचलित है. जो अच्छा खाना पकाता है उसे नळपाक की उपाधि दी जाती है या उसे इस नाम से पुकारा जाता है.  

5. सगर
इक्ष्वाकु वंश के राजा असित के पुत्र! सगर राजा ने अनेक अश्वमेध यज्ञ संपन्न कर अतुल तेज को प्राप्त कर देवो के देव इंद्र से सख्यत्व बना लिया. उत्तर गोग्रहण समय  कौरव-पांडवों के बिच हुए युद्ध को देखने के लिए देवेंद्र के साथ उसके विमान में राजा  Sagar भी आये थे ऐसा वर्णन किया गया है.  

6. पुरुकुत्स
मांधातृ/मान्धाता चक्रवर्ती के पुत्र. जब मौने नामक गन्धर्व नागकुल पे आक्रमण करके राज्य को छीन लिया था तब नाग देव भगवान् विष्णु के शरण में आते है. भगवान् विष्णु उनके भक्ति से प्रसन्न होकर पुरुकुत्स के शरीर में प्रवेश कर गन्धर्व को पराजित करूँगा ऐसा वरदान देते है. नागाधिपति अपनी बहन नर्मदा से कहकर नर्मदा के पति पुरुकुत्स को रसातल आने के लिए प्रार्थना कर गन्धर्व से लड़ने के लिए कहते है.  पुरुकुत्स अपनी पत्नी नर्मदा की प्रार्थना की सराहना करते हुए गन्धर्व से युद्ध कर नागकुल को कष्ट से मुक्त करते है. नागाधिपति इस से संतुष्ट होकर
नर्मदा को वर देते है की जो कोई भी कहा भी हो कैसे भी किसी भी समय Narmada की प्रार्थना करेगा या उसका नामस्मरण करेगा उसे कभी विषबाधा नहीं होगी और इतनाही नहीं जो कोई भी मनुष्य कहा भी जाये किसी समय में भी जाये अगर वह नर्मदा के इस श्लोक का पठण करेगा उसे साँप का भय नहीं रहेगा, साँप नहीं काटेगा और उसपर विष का परिणाम नहीं होगा. आज भी संध्या वंदन करते समय इस श्लोक पठण किया जाता है. 
नर्मदायै नमः: प्रातः नर्मदायै नमो निशि !
नमोस्तु नर्मदे तुभ्यं त्राहि मां विष सर्पत: !!

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