Sunday, May 29, 2016

The Story Of Vat Savitri

      जानिए स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य देनेवाला वट-सावित्री व्रत के बारे में

सावित्री और सत्यवान की कथा सबसे पहले महाभारत के वनपर्व में मिलती है। जब युधिष्ठिर मार्कण्डेय ऋषि से पूछ्ते हैं कि क्या कभी कोई और स्त्री थी जिसने द्रौपदी जितनी अपने पतिसे  भक्ति प्रदर्शित की?

तब मार्कण्डेय ऋषि कहते है :-
सावित्री प्रसिद्ध तत्त्वज्ञानी राजर्षि अश्वपति की एकमात्र कन्या थी। अपने वर की खोज में जाते समय उसने निर्वासित और वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान् को पतिरूप में स्वीकार कर लिया। जब देवर्षि नारद ने उनसे कहा कि सत्यवान् की आयु केवल एक वर्ष की ही शेष है तो सावित्री ने बडी दृढता के साथ कहा- जो कुछ होना था सो तो हो चुका। माता-पिता ने भी बहुत समझाया, परन्तु सती अपने धर्म से नहीं डिगी!
सावित्री का सत्यवान् के साथ विवाह हो गया। सत्यवान् बडे धर्मात्मा, माता-पिता के भक्त एवं सुशील थे। सावित्री राजमहल छोडकर जङ्गल की कुटिया में गयी। आते ही उसने सारे वस्त्राभूषणों को त्यागकर  सास-ससुर और पति जैसे वल्कल के वस्त्र पहनते थे वैसे ही पहन लिये और अपना सारा समय अपने अन्धे सास-ससुर की सेवा में बिताने लगी। सत्यवान् की मृत्यु का दिन निकट पहुँचा.
सत्यवान् अगिन्होत्र के लिये जङ्गल में लकडियाँ काटने जाया करते थे. आज सत्यवान् के महाप्रयाण का दिन था सावित्री चिन्तित हो रही थी. सत्यवान् कुल्हाडी उठाकर जङ्गल की तरफ लकडियाँ काटने चले.  सावित्री ने भी साथ चलने के लिये अत्यन्त आग्रह किया। सत्यवान् की स्वीकृति पाकर और सास-ससुर से आज्ञा लेकर सावित्री भी पति के साथ वन में गयी। सत्यवान लकडियाँ काटने वृक्षपर चढे, परन्तु तुरंत ही उन्हें चक्कर आने लगा और वे कुल्हाडी फेंककर नीचे उतर आये। पति का सिर अपनी गोद में रखकर सावित्री उन्हें अपने आञ्चल से हवा करने लगी।
Banyan tree, Bargad ka ped, Bodhi vriksh
Bargad/Banyan tree

थोडी देर में ही उसने भैंसे पर चढे हुए, काले रंग के सुन्दर अंगोंवाले, हाथ में यमपाश लिये हुए, सूर्य के समान तेजवाले एक भयङ्कर देव-पुरुष को देखा.  उसने सत्यवान् के शरीर से फाँसी की डोरी में बँधे हुए अँगूठे के बराबर पुरुष को बलपूर्वक खींच लिया। सावित्री ने अत्यन्त व्याकुल होकर आर्त स्वर में पूछा- हे देव! आप कौन हैं और मेरे इन हृदयधन को कहाँ ले जा रहे हैं? उस पुरुष ने उत्तर दिया- हे तपस्विनी! तुम पतिव्रता हो, अत: मैं तुम्हें बताता हूँ कि मैं यम हूँ और आज तुम्हारे पति सत्यवान् की आयु क्षीण हो गयी है, अत: मैं उसे बाँधकर ले जा रहा हूँ. तुम्हारे सतीत्व के तेज के सामने मेरे दूत नहीं सके, इसलिये मैं स्वयं आया हूँ. यह कहकर यमराज दक्षिण दिशा की तरफ चल पडे।
 सावित्री भी यम के पीछे-पीछे जाने लगी. यम ने बहुत मना किया, सावित्री ने कहा- जहाँ मेरे पतिदेव जाते हैं वहाँ मुझे जाना ही चाहिये यह सनातन धर्म है। यम बार-बार मना करते रहे, परन्तु सावित्री पीछे-पीछे चलती गयी. उसकी इस दृढ निष्ठा और पतिव्रता धर्म से प्रसन्न होकर यम जी ने सत्यवान को छोड़कर  सावित्री से एक ही वर माँगने के लिए कहा? तब सावित्री ने ऐसा वर माँगा जिससे सब कुछ उसे मिला। सावित्री ने माँगा हे परमेश्वर मेरे अंधे सास-ससुर को उनके पोते को देखने की अभिलाषा है वह इच्छा पूर्ण करो और इसके अलावा कुछ नहीं चाहिए ! यम जी ने बिना सोचे ही तथास्तु कहा ! और वो सत्यवान को लेकर चल पड़े फिर से सावित्री ने यमराज के पीछे जाने लगी वह लौटती कैसे?

सावित्री ने कहा- मेरे पति को आप लिये जा रहे हैं और मुझे आपने वर दिया है की मेरे सास-ससुर पोते को देखेंगे सत्यवान के बिना यह कैसे सम्भव है? मैं पति के बिना सुख, स्वर्ग और लक्ष्मी, किसी की भी कामना नहीं कर सकती. बिना पति मैं जिना भी नहीं चाहती। यम ने बिना ही सोचे प्रसन्न मन से तथास्तु कह दिया था. वचनबद्ध यमराज आगे बढे और यमराज ने एक-एक करके वररूप में सावित्री के अन्धे सास-ससुर को आँखें दीं, खोया हुआ राज्य दिया, और सत्यवान-सावित्री को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और वचनबद्ध यमराज ने सत्यवान् के सूक्ष्म शरीर को पाशमुक्त करके सावित्री को लौटा दिया, और सत्यवान् को चार सौ वर्ष की नवीन आयु प्रदान की. सत्यवान  को लम्बी आयु देके अदृश्य हो गए. सावत्री के पतिव्रता धर्मे से उसे जो चाहिए था वह सब कुछ मिल गया. शीघ्र ही सावित्री के सास-ससुर ने पौत्र ( पोते) का मुख देखा।

प्रतिवर्ष सुहागिन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। कहा जाता है कि वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु डालियों पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है.
इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, सति सावित्री की कथा सुनने वाचन करने से सौभाग्यवति महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है.
वट सावित्री पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन और व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है.
वट पूर्णिमा का उत्तराखंड, उड़ीसा, बिहार, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र , तथा आदि स्थानों पर विशेष महत्व है। अत: वहां की महिलाएं विशेष पूजा-आराधना करती हैं. साथ ही पूजन के बाद अपने पति को रोली और अक्षत लगाकर चरणस्पर्श कर मिष्ठान प्रसाद वितरित करती है.
Banyan leaf, Bodhi Leaves, Bargad ke patte
Banyan leafs

 जानिए इस विशेष और विशाल बरगद (बनाया) के पेड़ के बारे में
पुराणों में भी इसका जिक्र किया गया है जो सत्यवान-सावित्री कथा पर जन परिचित है. जिसे वट-पूर्णिमा भी कहा जाता है.
अपने हवाई जड़ों के एक चौंकाने की संरचना का गुण है कि पेड़ के हर हिस्से में रखती है, बरगद का पेड़ सबसे जादुई पेड़ों में से एक है. यह प्रकृति में कुछ तत्व है जो हर एक पहलू में उपयोगी है में से एक है. यही कारण है कि बरगद के पेड़ भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है.
यहाँ इस पेड़ के बारे में एक दिलचस्प तथ्य है: भारत से मूल रूप से, इस पेड़ को बनिया के नाम से जाने जाते है, ग्राम के बैठकों और अन्य उपयोगी समारोहों भी उसकी छाया में जगह ली जाती है !

त्रिदेवोका निवास स्थान

                               मूलतो ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे !
                              अग्रत: शिवरूपाय वृक्ष राजायते नम: !!
अर्थात:- इस वृक्ष के राजा को मेरा प्रणाम जिस वृक्ष में ब्रम्ह, विष्णु और शिव का निवास होता है. इस वृक्ष को बरगद का पेड़ कहते है जो विशाल सा होता है. इस का उपयोग कई तरह से किया जाता है.
भारतीय संस्कृति में, बरगद के पेड़ को पवित्र माना जाता है और पेड़ की पत्तियों पर भगवान कृष्ण के आराम कि जगह मानी जाता है. इसिलिए कहा गया है " वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं " जो बरगद के पेड के पत्ती पर सोए हुए कृष्ण भगवान को मेरा प्रणाम.
वास्तव में, यह भी माना जाता है कि भगवान गौतम बुद्ध को इसी बरगद के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ. यह बरगद के पेड़ मनुष्य के विभिन्न उपयोगोमें काम आया है और रहेगा.


भगवत गीता में भगवान कृष्ण कहते है " अश्वथ: सर्व वृक्षाणां " अर्थात सब तरह के पेड़ों में से मैं केवल अश्वथ      
( बरगद या बनाया ) के पेड़ में हु या उसमे मैं रहता हु. जिससे इस वृक्ष की महानता और भी बढ़ गयी है. इस तरह के अनेक उल्लेख हम पुराणोंमें तथा वेदो में पढ़ सकते है।

बरगद के पेड़ के कुछ लाभदाई तथ्य 

चलो एक नज़र डालते है कई तरह से उपयोग में आने वाले इस बरगद के पेड़ बारे में.
* बरगद  के पेड़ अभी भी कई गांवों में छाया का एक स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है।
* इस पेड़ के हर हिस्से का अपना अनूठा चिकित्सा का उपयोग करता है।
* छाल और बीज शरीर के तापमान को बनाए रखने और मधुमेह के इलाज के लिए एक टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
* इस पेड़ की खाल का उपयोग शरीर पर सूजन होनेपर किया जाता है !
* त्वचा रोग उपचार बरगद के पेड़ के कुछ गुणों के साथ भी संभव है।
* चपड़ा चिपकने वाला और सतह खत्म करने में भूमिका की एक बड़ी संख्या है।
* पेड़ की छाल का प्रयोग कागज बनाने के लिए किया जा सकता है।
* बरगद के बीज से दांत और मसूड़े धोने के लिए किया जाता है जिससे मसूड़े मजबूत होते है !
* भारत तथा नेपाल की महिलाए इस के बीज का रसायन बनाके बालोमे लगाती है जिससे बाल मजबूत ,घने और चमकीले होते है।
* फाइबर भी आदेश रस्सियों बनाने के लिए पेड़ की छाल का उपयोग  लाया जा सकता है।
* अक्सर जलाऊ लकड़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है।
* यहाँ तक कि इस पेड़ की पत्तियां भोजन के लिए उपयोगी होते हैं  प्राकृतिक बायोडीग्रेडेबल प्लेटों के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।