Tuesday, May 31, 2016

Importance of Swastik

Four thousand years ago in the Indus Valley civilization finds traces of the swastika. In Buddhism, the swastika shape is shown at the heart of Buddha. Central Asia countries considered an indicator of the swastika as auspicious and good fortune. Worshiped in Nepal as a Heramb. In Mesopotamian weapons to conquer the swastika symbol is used. Hitler adopted the swastika. Similarly, in every religion worship in some form.
Let's see the importance of the Swastika!

                                             स्वास्तिक 


स्वास्तिक की आकृति भगवान श्रीगणेश का प्रतिक, जगत पालनकर्ता भगवान विष्णु  और सूर्य का आसन माना जाता हैं. स्वास्तिक को भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व प्राप्त हैं स्वास्तिक संस्कृत शब्द स्वस्तिका से लिया गया है जिसका अर्थ है शुभ होस्वास्तिक शब्द कोसुऔरअस्ति”  का मिश्रण योग माना जाता है।

यहांसु”  का अर्थ है शुभ औरअस्ति”  से तात्पर्य है होना। अर्थात स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है  “शुभ हो, कल्याण हो”. स्वस्तिक का महत्व सभी धर्मों में बताया गया है. इसे विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. चार हजार साल पहले सिंधु घाटी की सभ्यताओं में भी स्वस्तिक के निशान मिलते हैं. बौद्ध धर्म में स्वस्तिक का आकार गौतम बुद्ध के हृदयस्थल पर दिखाया गया है। मध्य एशिया देशों में स्वस्तिक का निशान मांगलिक एवं सौभाग्य का सूचक माना जाता है. नेपाल में हेरंब के नाम से पूजा जाता  हैं. मेसोपोटेमिया में अस्त्र-शस्त्र पर विजय प्राप्त करने हेतु स्वस्तिक चिह्न का प्रयोग किया जाता है. हिटलर ने भी इस स्वस्तिक चिह्न को अपनाया था. और इसी तरह हर धर्म में इसे किसी ना किसी रूप में पूजा है.तो आइये जाने स्वास्तिक का महत्व !

हिंदू धर्म में स्वास्तिक का महत्व:-
वास्तु शास्त्र के अनुसार स्वास्तिक में चार दिशाएँ होती हैं। जो की  पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और चार वेदों - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का प्रतीक हैं. कुछ यह भी मानते हैं कि यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं. इसलिए इसे हिन्दू धर्म में हर शुभ कार्य में पूजा जाता है, किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसकी पूजा करने का महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य सफल होता है. स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल का प्रतीक भी माना जाता है.


स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यदि स्वास्तिक के आसपास एक गोलाकार रेखा खींच दी जाए, तो यह सूर्य भगवान का चिन्ह माना जाता है। वह सूर्य देव जो समस्त संसार को अपनी ऊर्जा से रोशनी प्रदान करते हैं। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्यों में स्वास्तिक का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है, फिर चाहे वह शादी हो, बच्चे का मुंडन हो इसे हर छोटी या बड़ी पूजा से पहले पूजा जाता है विशेषत: शादीमें किए जाने वाले अक्षतारोपण विधिमे वर-वधु के मध्य पकड़े जाने वाले अंतरपट ( सफेद वस्त्र ) पर स्वस्तिक का चिन्ह लिखा जाता है यह धारणा है की शादी की यह रस्म शुभ, मंगलमय हो.
Svastik
Swastika 

बौद्ध और जैन धर्म में स्वास्तिक का महत्व :-
बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है. यह भगवान बुद्धा के पग़ चिन्हों को दर्शाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है. यही नहीं स्वास्तिक भगवान बुद्धा के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है. जैन धर्म में स्वास्तिक का महत्व हिन्दू धर्म से कई ज्यादा महत्व स्वास्तिक जैन धर्म में है. जैन धर्म में यह सातवें जीना का प्रतिक है जिसे सब तृथंकरा सुपरसवा के नाम से भी जानते हैं, श्वेताम्बर जैन सांस्कृतिक में स्वस्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक माना जाता  है।

यह  जानना बेहद रोचक होगा कि केवल लाल रंग से ही स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है?
भारतीय संस्कृति में लाल रंग का सर्वाधिक महत्व है और मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग सिन्दूर, रोली या कुमकुम के रूप में किया जाता है। लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक है। लाल रंग प्रेम, रोमांच साहस को भी दर्शाता है. धार्मिक महत्व के अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाल रंग को सही माना जाता है. लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है. यह रंग शक्तिशाली मौलिक है. हमारे सौर मण्डल में  मौजूद ग्रहों में से एक मंगल ग्रह का रंग भी लाल है. यह एक ऐसा ग्रह है जिसे साहस, पराक्रम, बल शक्ति के लिए जाना जाता है. यह कुछ कारण हैं जो स्वास्तिक बनाते समय केवल लाल रंग के उपयोग की ही सलाह देते हैं. बराबर लंबाई के चार हथियार के साथ एक क्रॉस, एक सही कोण पर मुड़े प्रत्येक हाथ के साथ समाप्त होता है। कभी कभी क्रासिंग लाइनों क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर पर भी एक रेखा खींची जाती है , कभी कभी  प्रत्येक हाथ के बीचोबीच एक-एक विराम दिए जाते है उसकी शोभा बढ़ाने के लिए !
Svastikh

स्वस्तिक का प्रयोग :-
स्वस्तिक सबसे अधिक अच्छी किस्मत लाने के लिए एक आकर्षण के रूप में प्रयोग किया जाता है . और कई अनेक वाममार्ग जैसे  तंत्र-मंत्र , जादू टोना, भूत-प्रेत बाधा भगानेके लिए इन  आदि प्रयोगमे स्वस्तिक का प्रयोग वामावर्त से लिखकर किया जाता है, शुभ कर्मो में दक्षिणावर्त  से  स्वस्तिक का अधिक इस्तेमाल किया जाता है. स्वस्तिक का प्रयोग  बहुत सामान्य हिंदू कला, वास्तुकला और सजावट में इस्तेमाल किया जाता है. यह मंदिरों, घरों, दरवाजे, कपड़े, कारों, और कीचैन आदि के लिए सजावट का एक प्रमुख हिस्सा है. नाजियों ने को  स्वस्तिक अपनाया था  क्यों कि यह एक आर्य प्रतीक नस्लीय शुद्धता और श्रेष्ठता का संकेत के रूप में समझा गया था।
यह सभी तथ्य हमें बताते हैं कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कोने-कोने में स्वास्तिक चिन्ह ने अपनी जगह बनाई है. फिर चाहे वह सकारात्मक दृष्टि से हो या नकारात्मक रूप से। परन्तु भारत में स्वास्तिक चिन्ह को सम्मान दिया जाता है और इसका विभिन्न रूप से इस्तेमाल किया जाता है।