ज्योतिष्य एक विशाल और जटिल शास्त्र है जिसे समझनेमें और पढनेमें सालो लग जायेंगे. ज्योतिष्य शास्त्र को वेद नारायण भगवान का अंग कहा जाता है जिसमे ज्योतिष्य शास्त्र को वेद के "आँखे" कहा गया है. जैसे की मनुष्य के शरीर में आंखोंको उच्च दर्जा दिया गया है. मनुष्य के शरीर में कुछ हो ना हो पर आँखे होनी चाहिए ऐसा कहा जाता है. "मनुष्याणां नयनं प्रधानं" इस वचन के अनुसार आंखोंको अधिक महत्वपूर्ण माना गया ऐसा देखा जा सकता है. उसी तरह मनुष्य के जीवन में अगर भविष्य तथा शकुन-अपशकुन जाननेका ज्ञान हो तो उसका जीवन सुखमय हो जाएगा इस बात को मध्य नजर रखते हुए साक्षात भगवान नारायण द्वारा ज्योतिष शास्त्र की रचना की गयी. मनुष्य का जीवन नवग्रहों पर आधारित है ऐसा सिद्ध हो चुका है. जिसमे मनुष्य के जन्म नक्षत्र और जन्म राशि के अनुसार फल मिलता है तथा उसके जीवन में सुख-दुःख ,उतार-चढ़ाव आते है. आज हम उन नक्षत्रों तथा राशि के बारे में जाननेवाले है !
२८ नक्षत्र और उनकी उत्पत्ति
नक्षत्रोंके जन्म के बारे में और उनकी विशेषता (भाग १)
ऐसा माना जाता है की जगत कर्ता श्री ब्रम्हा जी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति तथा उनकी पत्नी प्रसूति देवी से 59 बेटिंया और १ बेटे का जन्म हुआ, उनमेसे २७ बेटिंया नक्षत्र के नाम से जानी जाती है. और उनमेसे एक नक्षत्र २८ वा, जो "अभिजीत" नक्षत्र से जाना जाता है. अभिजीत एक ही ऐसा Star है जो पुरुष में गणना होती है. बच्चे २७ नक्षत्र की शादी चन्द्र ग्रह से कर दी गयी. जिस दिन हमारा जन्म होता है उस दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है हमारी वही जन्म राशि होती है. चन्द्रमा एक नक्षत्र के अंदर अर्थात एक पत्नी के साथ सव्वा एक दिन ३० घंटे तक रहता है.
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Planets & Star's ( Nakshatra) |
अनादि काल से मनुष्य बुद्धि से नए विषय जाननेकी जिज्ञासा से अनेक विषयपर संशोधन किया, करते आ रहे है. इन संशोधन में एक विषय आकाश" पर भी था. हजारो सालोंसे आदि मानव से लेकर आजतक आकाश से सम्बंधित हर एक विषय पर संशोधन हो रहा है. मनुष्य के द्वारा आकाश पर किए गए अध्ययन के बाद वहां उनको २८ नक्षत्र के साथ हजारो Stars की जानकारी प्राप्त हुयी. उसी तरह उन्होंने हर एक नक्षत्र को अलग-अलग नाम दिया. भविष्य ऐसा पाया गया की उनको हर एक नक्षत्र का नाम याद रखनेमें कठिनाई हुई इसलिए उन्होंने उन नक्षत्रोंको ८८ भागो में बाट दिया और उन नक्षत्र पुंज का अलग-अलग नाम रखा गया.
हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि द्वारा भी इन विषयोंपर संशोधन हुआ. यजुर्वेद में इसका उल्लेख मिलता है. परन्तु यहाँ पर उन्होंने केवल २७ नक्षत्रोंके समूह के बारे में बताया। क्योंकि हरसाल सूर्य ग्रह का प्रवास ( यात्रा) इन २७ नक्षत्रों के समूह से होता है. वेद-काल में केवल २४ नक्षत्र थे. उस समय फाल्गुनी , आषाढा और भाद्रपदा इन ३ नक्षत्रोंका अलग समूह था, आगे चलके इन को २ के विभाग में बाट दिया गया जो पूर्वा-उत्तरा नाम से जाने गए और २७ नक्षत्र बन गए.
और अभिजीत" को भी नक्षत्र की संज्ञा देकर उन २७ में शामिल किया गया. शतपथ ब्राम्हण में इन २८ नक्षत्र के बारे दिया गया है. उनको "सर्वतोभद्र" नाम पुकारा जाता है आगे चलके अभिजीत नक्षत्र को उनमेसे निकल दिया क्योंकि वह नक्षत्र सूर्य-चन्द्र के मार्ग से अधिक दूर उत्तर की तरफ निकल गया था. पृथ्वी की ध्रुव रेशा एक जैसी नहीं होने से सूर्य और चन्द्र उगनेकि और सांझ के मार्ग में हररोज थोडेसे प्रमाण में बदलाव होता है.
अगर पृथ्वी स्थिर है ऐसा माननेसे Surya-Chandra और इतर ग्रहों के साथ नक्षत्रों का समूह पृथ्वी के चक्कर दे रहे है ऐसा देख सकते है , इनमेसे केवल हम सूर्य-चन्द्र के बारे में सोचते है तो उनके उगम-निगम के मार्ग को "आयनिक वृत्त " कहा जाता है. इन आयनिक वृत्त के १२ विभाग किए गए और उनको "राशि" के नाम से नामकरण किया गया. उन २७ नक्षत्रोंको इन १२ राशियोमे बाट दिया गया. सूर्य और चन्द्र पूर्व दिशा में उदय होकर पश्चिम दिशा में निगम होते हुए देख सकते है. ग्रहोंके इन भासमान मार्ग को क्रांतिवृत्त या आयनिक वृत्त ऐसा कहा जाता है.
क्रांतिवृत्त गोलाकार ३६० अंश का होता है इस क्रांतिवृत्त के समरूप १२ विभाग जिसे राशि कहा जाता है और इसी राशि के २७ भाग जिसे Nakshatra कहते है. इन क्रांतिवृत्त के १२ विभाग जो बारा राशि और २७ नक्षत्र हुए. क्रांतिवृत्त के ३६० अंश को १२ से विभाजन किया जाता है. इसलिए हरएक राशि ३० अंश की होती है. इस प्रमाण से नक्षत्र के कितने अंश हुए ए जाननेके लिए थोड़ी कसरत पड़ती है.
क्रांतिवृत्त गोलाकार ३६० अंश का होता है इस क्रांतिवृत्त के समरूप १२ विभाग जिसे राशि कहा जाता है और इसी राशि के २७ भाग जिसे Nakshatra कहते है. इन क्रांतिवृत्त के १२ विभाग जो बारा राशि और २७ नक्षत्र हुए. क्रांतिवृत्त के ३६० अंश को १२ से विभाजन किया जाता है. इसलिए हरएक राशि ३० अंश की होती है. इस प्रमाण से नक्षत्र के कितने अंश हुए ए जाननेके लिए थोड़ी कसरत पड़ती है.
सबसे पहले ३६० अंश के क्षण कर लेने चाहिए. १ अंश ६० क्षण ( कला) , इसके अनुसार ३६० x ६०= २१,६०० क्षण हो गए. इसको २७ से विभाजन करनेसे ८०० कला यह हमारा जवाब होता है. अर्थात १ नक्षत्र में ८०० कलाएं होती है. इस कला के अंश करते समय फिरसे ६० से विभाजन करना पड़ता है तब १३ से पूरा विभाजन होता है और २० शेष रह जाते है (१३x६०=७८०+२० कला ८०० कला) यानि १३ अंश २० कलाओका एक नक्षत्र. यानि एक Nakshtra के १३ अंश २० कला या ८०० कलाएं होती है. एक नक्षत्र में चार चरण होते है तो एक चरण के २०० कलांए हुयी।
२०० का विभाजन ६० से करनेसे ३ अंश २० कला होती है. (३x६०=१८०+२०=२०० कला) इसके अनुसार ३ अंश २० कला एक नक्षत्र का चरण होता है. अब १२ राशि होनेसे २७ नक्षत्र यानि हर एक राशि में कितने नक्षत्र आते है ? एक नक्षत्र के चार चरण होनेसे २७x४ = १०८ चरण होते है. १०८ को १२ से विभाजन करनेसे ९ आंकड़ा हमें मिलता है. अर्थात १ राशि में ९ चरण. चार चरण एक नक्षत्र ८ चरण के दो नक्षत्र तो बचा शेष १ अर्थात एक चौथाई यानि सव्वा दो नक्षत्र की एक राशि. २ राशि साडेचार नक्षत्र , ८ राशि में १८ नक्षत्र और १२ राशि २७ नक्षत्र ऐसे विभाजन किया जाता है. अभी यह देखेंगे कोनसे राशि में कोनसा नक्षत्र आता है. नक्षत्रों में पहला अश्विनी नामक नक्षत्र से शुरुवात होती है और राशियोमे मेष राशि पहले आती है. इसीलिए अश्विनी नक्षत्र और मेष राशि की शुरुवात समान बिंदु से होती है , क्रमानुसार वृषभादि ११ राशियाँ आती है. तो चलो उन २७ नक्षत्र और १२ राशि के नाम जान लेते है !
२०० का विभाजन ६० से करनेसे ३ अंश २० कला होती है. (३x६०=१८०+२०=२०० कला) इसके अनुसार ३ अंश २० कला एक नक्षत्र का चरण होता है. अब १२ राशि होनेसे २७ नक्षत्र यानि हर एक राशि में कितने नक्षत्र आते है ? एक नक्षत्र के चार चरण होनेसे २७x४ = १०८ चरण होते है. १०८ को १२ से विभाजन करनेसे ९ आंकड़ा हमें मिलता है. अर्थात १ राशि में ९ चरण. चार चरण एक नक्षत्र ८ चरण के दो नक्षत्र तो बचा शेष १ अर्थात एक चौथाई यानि सव्वा दो नक्षत्र की एक राशि. २ राशि साडेचार नक्षत्र , ८ राशि में १८ नक्षत्र और १२ राशि २७ नक्षत्र ऐसे विभाजन किया जाता है. अभी यह देखेंगे कोनसे राशि में कोनसा नक्षत्र आता है. नक्षत्रों में पहला अश्विनी नामक नक्षत्र से शुरुवात होती है और राशियोमे मेष राशि पहले आती है. इसीलिए अश्विनी नक्षत्र और मेष राशि की शुरुवात समान बिंदु से होती है , क्रमानुसार वृषभादि ११ राशियाँ आती है. तो चलो उन २७ नक्षत्र और १२ राशि के नाम जान लेते है !
२७ नक्षत्र
१) अश्विनी २) भरणी ३) कृत्तिका ४) रोहिणी ५) मृगशीर्ष ६) आर्द्रा ७) पुनर्वसू ८) पुष्य ९) आश्लेषा १०) मघा ११) पूर्वा फाल्गुनी १२) उत्तरा फाल्गुनी १३) हस्त १४) चित्रा १५) स्वाती १६) विशाखा १७) अनुराधा १८) ज्येष्ठा १९) मूळ २०) पूर्वाषाढा २१) उत्तराषाढा २२) श्रवण २३) धनिष्ठा २४) शततारका २५) पूर्वाभाद्रपदा २६) उत्तराभाद्रपदा २७) रेवती !
इसके अनुसार चन्द्र एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र में चलते रहता है वर्तमान में उस दिन वही नक्षत्र होता है, जिस दिन जिस नक्षत्र में चन्द्रमा होता उस दिन जन्म लेने वाले मनुष्य का नक्षत्र और राशि उस दिन के पंचांग से दिनमान से पता चलती है. सव्वा दो नक्षत्र की एक राशि होनेसे , एक नक्षत्र में चन्द्रमा ३० घंटेतक रहनेसे उन दो दिन में जन्म लेने वाले मनुष्य की एक ही राशि हो सकती है केवल नक्षत्र अलग होता है. जैसे की उदाहरण के लिए अश्विनी ४ चरण, भरणी के ४ , कृत्तिका के १ मेष राशि हो गयी.
बारा राशियाँ
१.मेष २.वृषभ ३.मिथुन ४.कर्क ५.सिंह ६.कन्या ७.तुला ८.वृश्चिक ९.धनु १०.मकर ११.कुम्भ १२.मीन !
अंतरिक्ष में कुछ विशेष चांदनियोंके के समूह को इन नामोसे जाना जाता है. अथर्वेद, यजुर्वेद और शतपथ ब्राम्हण जैसे महान प्राचीन ग्रंथो में इनकी जानकारी दी गयी है. सूर्य आकाश में जिस दीर्घ वृत्त मार्ग से भ्रमण करता है उसे क्रांतिवृत्त कहते है. इन क्रांतिवृत्त के २७ विभाग करके उसमे आनेवाले एक-एक तारा पुंज को नक्षत्र कहते है. ऐसे २७ नक्षत्र है.
हर एक नक्षत्र का राशि का एक स्वभाव, गुणधर्म होता है और कई अनेक विशेषताए होती है उनके बारे में हम अगले लेख में जानेंगे!