Friday, July 01, 2016

Mangal Sutra, a symbol of good luck

                                                        मंगलसूत्र

                                 क्या शादीशुदा स्त्री मंगलसूत्र पहनना जरूरी है ?


मंगल सूत्र हर एक शादीशुदा गृहीणिका सौभाग्य का प्रतीक होता है. जिस के बिना वह अधूरी है ऐसा कहा जाता है. आज भी हर एक गृहिणी अपने अखण्ड सौभाग्य के लिए पूजा-पाठ , व्रत जैसे नियमों का पालन करते रही है हमारे पूर्वज, बढे-बुजुर्ग शादी-शुदा गृहिणी  अपने गले से मंगल सूत्र कभी अलग नहीं करती चाहे कुछ भी हो  जाए. मंगलसूत्र, माथे पर सिन्दूर, हाथ में कंगन, और  पाव में बिछुए यह सब सौभाग्य के प्रतीक है!
मंगल सूत्र : काले मणियों से सोने में या रेशम के धागे में बनी माला. और उसमे दो छोटे कटोरी के आकर के सोने के मणि या कटोरी। इसके विकल्प में आप केवल सोनेका पदक या पेंडेंट का इस्तेमाल नहीं कर सकते !

                   मांगल्यं तन्तुनानेन मम जीवन हेतुना !
                  कण्ठे बध्नामि शुभगे त्वं जीव शरदाम शतम !!
अर्थात:- यह एक पवित्र धागा है जो तेरे लम्बे जीवन के लिए आवश्यक है, मैं तेरे कंठ में  यह बांध देता हु जिससे तेरा आयुष्य बढे और तू सदा सुहागन रहे . शादी के समय मंगल सूत्र बांधते समय केवल यह एक मंत्र पढ़ा जाता है.
Mangal Sutra front & back

विवाहित महिलाओं के लिए शुभ माना जाता है, मंगलसूत्र दिव्य शक्तियों के लिए माना जाता है, मंगल सूत्र से जुड़े काले मणि बुरी नजर से तथा दुष्ट शक्ति से बचाता है. और सुरक्षा को दर्शाता है और अनिवार्य रूप से पति के जीवन की रक्षा के लिए माना जाता हैप्रान्त तथा पद्धति के अनुसार मंगल सूत्र अलग-अलग प्रान्त में अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे की ताली , मांगल्य, मंगळसूत्र इत्यादि....!
और इसके पहनने के रिवाज भी अलग-अलग है, जैसे दक्षिण भारतीय लोग सोने में कटोरी (Round Piramid) जुड़ा हुआ , और North Indian लोग काले मणि के साथ सोनेसे बना पेंडेंट जैसा पहनते है. और कुछ महिलांए पीले धागे में पहनती है. चाहे रिवाज अलग हो परन्तु हर एक भारतीय शादीशुदा नारी मंगल सूत्र पहनती है और उसका अच्छी तरह से ख़याल भी रखती है.  उसे मांगल्य का , सौभाग्य का और लम्बी उमर का प्रतीक मानती है !

इन सोने के कटोरी का बहुत महत्व है कभी हमने सोचा नहीं की क्यों  गोलाकार में ही होती है ? मंगल सूत्र की लम्बाई गले से लेकर ह्रदय तक या पेट और ह्रदय के बीचोबीच तक होनी चाहिए जहांपर अनाहत चक्र होता है. कहा जाता है की अनाहत चक्र ह्रदय से संबधित होता है. मंगल सूत्र में जो कटोरी होती है ( गोलाकार पिरामिड जैसीउस सोने की से कटोरी सकारात्मक ऊर्जा निकलती  है वह अनाहत चक्र से जाके टकराती है उससे अनाहत चक्र की शक्ति बढ़ती है. उससे मन शांतता, आत्मशक्ति  तथा सहनशील बढाती है जिस की जरुरत स्त्री को होती है जो पहली बार नए परिवार में , नए जीवन शैली में अर्थात शादी के बाद  अपने पति के साथ ससुराल में  कदम रखती है.

 शादीशुदा गृहणिका मन शांत से होने घर में प्रेम और विश्वास बना रहता है नहीं तो घर में कलह होने के अनेक अवकाश निर्माण होते रहते है.  आत्मशक्ति के प्रभाव से घर का वातावरण शुद्ध रहता है जिससे नववधू की हर एक इच्छा पूरी की जाती है , उसको अपने इच्छाए प्रकट करनेकी जरुरत भी नहीं गिरती वह समझ जाती है. इस प्रकार का मनोबल उसे नए घर में मिले उसे कोई भी इच्छ में त्रुटि रह जाए ऐसे अनेक लाभ को देखकर ही मंगल सूत्र में कटोरी की Pyramid की प्रथा का प्रारम्भ हुआ यह रिवाज हजारो सालोसे चलते रहा है. आपने देखा होगा केवल शादीशुदा स्त्री ही मंगल सूत्र पहनती है. जबतक कुंवारी लड़की  अपने मात-पिता के पास रहती है तबतक उसे कोई विशेष धैर्य की या मनोबल की आवश्यकता नहीं पड़ती है. इस रहस्य को कोई जाननेकी कोशिश नहीं की गयी इसलिए वर्तमान समय में स्त्री बहुत कम या कभीकभार मंगलसूत्र पहनती है. इसका परिणाम यह हुआ की घर में कलह , अशांति, पति-पत्नी में संशय बढ़ाना  यहांतक की शादी के कुछ ही महीनो या साल में  तलाक हो जाना इत्यादि समस्याएं पैदा होना !

अगर किसी  भी स्त्री को मंगल सूत्र पहनने की इच्छा नहीं है तो वह केवल अपने ह्रदय स्थान पर एक पिरामिड गोलाकार के आकर की कटोरी या उस तरह के किसी आभूषण को पहन सकती है. उससे उसे आत्मशक्ति बढनेमे सहायता मिलती है. अपने पूर्वज ऐसे अनेक संशोधन करके उसका खुद प्रयोग करके ऐसे अनेक  रीती-रीवजोंको जन्म दिया जिस के पालन से मनुष्य का कल्याण होता है और मनुष्य का लाभ होता है. बढे-बुजुर्ग लोगोंको  उनके गृहस्थ जीवन  कभी मनोवैद्य की , या किसी दवा की , कांसुलर की जरूरत नहीं गिरी. उन्होने तो  सामन्य से सामान्य पद्धति से मनुष्य का कल्याण सोचा और उस प्रथा को आज तक जीवित रखा. आज हम अपने रीती-रीवजोंको अंधविश्वास मानते है क्यों की हम आधुनिक युग में जी रहे है. परन्तु विज्ञान कहा से आया ? ये कभी सोचा नहीं. हिन्दू प्रथा के पीछे केवल आध्यत्म नहीं बल्कि विज्ञान भी छुपा है !