भाद्रपद
माह के कृष्ण
प्रतिपदा से श्राद्ध
शुरू होते है यानी September के महीने में, उन 15 दिनों
को पितृपक्ष या
महालय भी कहा जाता
है, जो की
विशेषरूप से पितरोंके
लिए माने जाते
है. इन 15 दिनों में
मृत माता-पितरोंका
श्राद्ध, दान-धर्म,
तर्पण, पिण्डप्रदान किया जाता
है, कहा जाता
है ऐसा करनेसे
पितरोंको मुक्ति मिलती है
तथा उनका आशीर्वाद
बना रहता है.
अगर देखा जाय
तो अपने घर
में या अपनेसे
कोई नजदीकी व्यक्ति
की या किसी
रिश्तेदार की
मृत्यु होती है
तो हम अधिकतर
१० दिन , ३
महीने, ६ महीने
या एक साल
तक उनको याद
करते है समय
बीतते हुए हम
उनको भुला देते
है और अपने
निजी जीवन में
व्यस्त हो जाते
है जिसने हमें
यह जीवन दिया,
जिसने हमें जीने
की दिशा दिखाई
, जिसने हमें प्रेम-विश्वास से पाला
बड़ा किया उन
माता-पिता को,
भाई,या बहन
या रिश्तेदार को
झट से हम
भूल जाते है.
शायद इस बात को ध्यान रखते हुए पुत्र, भाई,सखा या आप्तजन के कर्तव्य को दर्शाने के लिए यह पितृपक्ष या पितरोंका श्राद्ध करनेकी प्रथा का प्रारम्भ हुआ होगा. जिससे तहत हम हमारे कर्तव्य का पालन करे और माता-पिता के प्रति निष्ठा से रहे. जो हम करते है वही हमें विरासत के रूप मिलता है!
शायद इस बात को ध्यान रखते हुए पुत्र, भाई,सखा या आप्तजन के कर्तव्य को दर्शाने के लिए यह पितृपक्ष या पितरोंका श्राद्ध करनेकी प्रथा का प्रारम्भ हुआ होगा. जिससे तहत हम हमारे कर्तव्य का पालन करे और माता-पिता के प्रति निष्ठा से रहे. जो हम करते है वही हमें विरासत के रूप मिलता है!
मृत्यु के पश्चात्
शरीर नष्ट हो
जाता है आत्मा
नहीं वह आत्मा
पितर सूक्ष्म रूप
से सदैव अपने
नजदीक ही रहती
है आत्मा एक
अद्भुत नहीं दिखाई
देनेवाली शक्ति है. The
Law of Energy, states that energy can neither be created nor destroyed; energy
can only be transferred or changed from one form to other.
शक्ति कभी नष्ट नहीं होती वह केवल एक प्राकार से दूसरे प्राकार में जाती है मनुष्य के मृत्यु के बाद वह शरीर नष्ट हो जाता है आत्मा नहीं. वह आत्मा पितृलोक में या किसी अन्य लोक में चला जाता है. जैसे की हम भूत,प्रेत, आत्मा को मानते है उनके भी आशा-आकांक्षा, इच्छाएं होती है जो अपने परिवार के लोगोंसे पूरी करनेकी उम्मीद रखते है। जैसे की हम भूक और प्यास लगते ही खाने के लिए या पिने के लिए हताहत होते है उसी तरह आत्मा के भी इच्छाएँ बढ़ती रहती है जिसे उस बंधन से मुक्ति की अपेक्षा रहती है. उसके आभास किसी-किसी को होता है. हर एक मनुष्य को आत्माएं, या भूत-प्रेत नहीं दिखाते. इसी को ही ज्योतिष्य शास्त्र के अनुसार पितृदोष या प्रेतबाधा कहते है. कहा जाता है इन दोषोंसे मुक्ति पाने के लिए मुक्ति क्षेत्रोमे जैसे की कहा गया है
शक्ति कभी नष्ट नहीं होती वह केवल एक प्राकार से दूसरे प्राकार में जाती है मनुष्य के मृत्यु के बाद वह शरीर नष्ट हो जाता है आत्मा नहीं. वह आत्मा पितृलोक में या किसी अन्य लोक में चला जाता है. जैसे की हम भूत,प्रेत, आत्मा को मानते है उनके भी आशा-आकांक्षा, इच्छाएं होती है जो अपने परिवार के लोगोंसे पूरी करनेकी उम्मीद रखते है। जैसे की हम भूक और प्यास लगते ही खाने के लिए या पिने के लिए हताहत होते है उसी तरह आत्मा के भी इच्छाएँ बढ़ती रहती है जिसे उस बंधन से मुक्ति की अपेक्षा रहती है. उसके आभास किसी-किसी को होता है. हर एक मनुष्य को आत्माएं, या भूत-प्रेत नहीं दिखाते. इसी को ही ज्योतिष्य शास्त्र के अनुसार पितृदोष या प्रेतबाधा कहते है. कहा जाता है इन दोषोंसे मुक्ति पाने के लिए मुक्ति क्षेत्रोमे जैसे की कहा गया है
अयोध्या मथुरा माया काशी
कांची अवंतिका !
पूरी द्वारावती चैव सप्तैते
मोक्षदायिका : !!
इन 7 पुण्यक्षेत्रोमे
या विशेषकर काशी
में या गया
क्षेत्र में
श्राद्ध, प्रेतसंस्कार, नारायण बलि, त्रिपिंडी
श्राद्ध इत्यादि किया जाता
है. जिससे मोक्ष
की प्राप्ति होती
है.
श्राद्ध क्या है?
श्राद्ध क्यों किया जाता
है ? अगर श्राद्ध
ना करे तो
क्या होगा? श्राद्ध
से और पितरोंसे
क्या सम्बन्ध है
? ऐसे अनेक सवाल
मन में उठते
है .
गौर किया जाय
तो यह सब
बाते और इसका
परिणाम अदृश्य होने से
किसीको यह बात
साबित करना शायद
ही कठीण होगा.
Hindu धर्म आस्था
और विश्वास पर
टिका हुआ है.
भगवत गीता में
श्री कृष्ण कहते
है - बुद्धिग्राह्यं अतीन्द्रियं"
और "विमूढ़नानुपश्यंती पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष:" ! आस्था-विश्वास, भक्ति यह
ज्ञान के चक्षु
से देखे जाते
है ,जो मनुष्य
इसे बाहरी आँखों
से देखना चाहता
है या देखता
है वह विमूढ़
कहलाता है. चाहे
जो भी हो
हिन्दू धर्म सूर्यलोक,चंद्रलोक, तथा पितृलोक
इत्यादि लोक तथा
पुनरजनम, जन्म-मरण
को मानता है यही
हिन्दू धर्म का
सिद्धान्त है. अर्थात
मृत्यु के उपरांत
भी जीवन है
यह सिद्ध होता
है और हमारा
धर्म कर्म के
जुड़ा है , जन्म
लेने के बाद
कर्म करना अनिवार्य
है क्योंकि उस
कर्म के अनुसार
ही मनुष्य को
फल की प्राप्ति
होती है.
"यत् श्रद्धया क्रियते तत् श्राध्दम्" जो श्रद्धा
से किया जाता
है अथवा दिया
जाता है उसे
श्राद्ध कहते है
! वैसे तो हरएक
धार्मिक कर्म में
भक्ति की जरुरत
है. मरणोत्तर जीवन
यह विषय बहुत
जटिल है परंतु
उसे समझलेना आवश्यक
है. कहा जाता
है आत्मा अमर
है वह एक
शरीर का त्याग
करके पुनः नया
शरीर धारण करती
है अथवा नए
शरीर की भटकती
रहती है. उस
आत्मा के मुक्ति
के लिए ही
श्राद्ध किया जाता
है. कहा जाता
है राजा दशरथ
ने मृत्यु के
पश्चात् भी प्रभु
श्रीराम को दर्शन
दिया था और
जगद्गुरु शंकराचार्य को वेदव्यासजी
ने दर्शन दिया
था.
अर्थात मृत्यु ही मनुष्य का आखरी पड़ाव नहीं बल्कि मृत्यु के पश्चात् भी जीवन होता है इस विषय पर अनेक ग्रन्थ उपलब्ध है उनमेसे पाश्चात्य लेखक फ्लामेरिओ इनका "Death & History's after death" यह पुस्तक और ऐसे अनेक पुस्तक प्रसिद्ध है. इसके अलावा गरुड़ पुराण में तो विस्तृत रूप से जानकारी दी गयी है। पितरोंको पितर योनि तथा अन्य योनिसे मुक्त करके अगला जन्म धारण करनेके लिए श्राद्ध करना अनिवार्य है तथा हर साल यह किया जाता है ताकि उनको मुक्ति मिले तथा अगला जन्म लेने के लिए कोई बाधा न पहुंचे।
अर्थात मृत्यु ही मनुष्य का आखरी पड़ाव नहीं बल्कि मृत्यु के पश्चात् भी जीवन होता है इस विषय पर अनेक ग्रन्थ उपलब्ध है उनमेसे पाश्चात्य लेखक फ्लामेरिओ इनका "Death & History's after death" यह पुस्तक और ऐसे अनेक पुस्तक प्रसिद्ध है. इसके अलावा गरुड़ पुराण में तो विस्तृत रूप से जानकारी दी गयी है। पितरोंको पितर योनि तथा अन्य योनिसे मुक्त करके अगला जन्म धारण करनेके लिए श्राद्ध करना अनिवार्य है तथा हर साल यह किया जाता है ताकि उनको मुक्ति मिले तथा अगला जन्म लेने के लिए कोई बाधा न पहुंचे।
श्राद्ध में 3 महत्वपूर्ण कर्म:-
1. अग्नौकरण ( हवन) 2. ब्राम्हण
भोजन 3. पिण्डप्रदान
यह तीन कर्म
को महत्वता दी
जाती है जिससे
पितोंको अन्न की
प्राप्ति होती है. पितरोंकी
तृप्ति होने से
श्राद्ध कर्ता को सुख-शांति, स्वर्ग-मोक्ष
, धन-धान्य की
प्राप्ति होती है.
कुल का उद्धार
होता है और
कुल अभिवृद्धि होता
है. कहा जाता
है की जिस
घर में श्राद्ध
आदि कर्म न
करनेसे उस घर
में धन्य-धान्य,
ऐश्वर्य होने से
भी उस घर
में शांति नहीं
रहती , बात-बात
अनबन होती रहती
है. श्राद्ध
करनेसे हमारे पूर्वज चाहे
किभी योनिमें हो
उनका उद्धार होके
उनको मुक्ति मिलती
है जैसे की
अग्नौकरण देवस्था:
स्वर्गस्था विप्रभोजनै:। यमस्था पिंडदानेन नरके
विकिरेणतु ।।
उच्छिष्टेन पैशाच्चाद्या: असुरान् भुरीभोजनात्
। दक्षिणेन मनुष्याद्या श्राद्धे
सप्तविधीयते ।।
अर्थात:- श्राद्ध में हवन
करनेसे जो देवलोक
में पितर है
उनको तृप्ति मिलती
है , ब्राम्हण भोजन
करानेसे जो स्वर्ग
में पितर है
उनको तृप्ति मिलती
है. पिण्डप्रदान करनेसे
जो पितर यमलोक
में है उनको
मुक्ति मिलती है, जो
अन्न पशु-पक्षियोंको
डाला जाता है
उससे नरक में
रहे पितरोंको मुक्ति
मिलती है ,श्राद्ध
में शेष रहा
अन्न देनेसे पिशाच्च
योनिमें रहे ईत्तरोंको
तृप्ति मिलती है , जो
मनुष्य अधिक मात्रा
में पितरोंके नामपर
अन्नदान करता है
असुर लोक में
रहे Pitronko मोक्ष मिलता है
और जो दक्षिणा
देकर श्राद्ध करता
है उससे जो
पितर मनुष्य योनिमें
जन्म लिए है
उनको तृप्ति मिलती
है जो मनुष्य
इन ७ प्रकार
के श्राद्ध करता
है उससे सभी
पूर्वजोंको , पितरोंको तृप्ति तथा
मोक्ष मिलता है!
श्राद्ध के कुछ प्रचलित प्रकार
मत्स्यपुराण
के अनुसार " नित्यं नैमित्तिकं काम्यं त्रिविधं श्राद्धमुच्यते" अर्थात
नित्य, नैमित्तिक और काम्य
ऐसे तीन प्रकार
के श्राध्द के प्रमुख
प्रकार है. यम
स्मृति" के अनुसार
इन तीन के
अलावा नान्दी और
पार्वण श्राद्ध को प्रमुख
माना गया है.
1.नित्य श्राद्ध
जो हरदिन किए जानेवाले
श्राद्ध को नित्य
श्राद्ध कहा जाता
है जो की
केवल पानीसे या
तिल के साथ
तर्पण किया जाता
है !
2. नैमित्तिक श्राद्ध
मृत व्यक्ति के नामपर
किए जानेवाले एकोद्दिष्ट
इत्यादि प्रकार के श्राद्ध
के नैमित्तिक कहा
जाता है.
मृतात्म्यासाठी
केली जाणारी एकोदि्दष्ट
इत्यादी प्रकारची श्राद्धे ही
नैमित्तिक श्राद्धे आहेत.
3. काम्य श्राद्ध
3. काम्य श्राद्ध
विशेष कामना की पूर्ति
के लिए किए
जानेवाले श्राद्ध को काम्य
श्राद्ध कहा जाता
है जो की
विशेष फल प्राप्ति
के लिए शुभवार,
शुभ नक्षत्र, और
शुभतिथि को देखकर
किया जाता है.
4. नांदीश्राद्ध
शुभकार्य में किए
जानेवाले जैसे की
शादी, जनेऊ धारण,
गृहप्रवेश इत्यादि कर्मो के
पूर्व में किए
जाने वाले श्राद्ध
को नान्दी श्राद्ध
कहा जाता है
नान्दी अर्थात "शुभ". इसमे सत्यवसु
या क्रतुदक्ष संज्ञक
विश्वेदेव , माता-पिता
इनका उच्चार किया
जाता है जिसे
कर्मांग और वृद्धि
श्राद्ध भी कहा
जाता है.
5. पार्वण श्राद्ध
Every year एकबार
किए जानेवाले श्राद्ध
को पार्वण श्राद्ध
कहा जाता है
जिसमे हवन, तर्पण,
पिण्डप्रदान और ब्राम्हण
भोजन कराया जाता
है!