Sunday, September 25, 2016

Pitru paksha-2 (Shraddha)

                   श्राद्ध के दौरान क्यों कौओ को खिलाया जाता है?      

कौआ, गाय और यमुना नदी की कथा
राजा दशरथ के मृत्यु के समय प्रभु श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वन में थे इस कारणवश श्रीराम को अपने पिता दशरथ महाराज का किसी प्रकार का कार्य करने को नहीं मिला। रावण का वध होने के बाद श्रीराम ने राज्य को संभाला. एकबार सीता और प्रभु श्रीराम वन में विहार करते समय आकश से एक यक्ष तालाब में गिरता है और श्रीराम से कहने लगता है की राजा दशरथ जी को मोक्ष नहीं मिला क्योंकि उनका क्रिया-कर्म ठीक से नहीं हुआ. यक्ष के वचन सुनकर श्रीराम अपने पिता दशरथ का श्राद्ध करनेकी तैयारियां करनेकी आज्ञा देते है.

यह बात राज पुरोहित को पता चलती है तब राज पुरोहित कहते है श्रीराम से हे प्रभु अगर श्राद्ध कर्म करना हो तो अपने द्वारा सम्पादित किया हुआ धन से ही करना चाहिए तभी जाकर राजा दशरथ को मुक्ति मिलेगी.
सीता और श्रीराम श्राद्ध करने हेतु यमुना नदी के तटपर जाते है सीता को वहीँपर छोड़कर श्रीराम गाव में जाते है श्राद्ध की सामग्री लाने के लिए इधर  दोपहर का समय बीतता रहता है मैय्या सीता व्याकुल होकर प्रभु की राह देखती रहती है. देखते-देखते यमुना नदी में से राजा दशरथ के दो हाथ बाहर आते है उन्हें देखकर माँ सीता कहती है हे पिताश्री आप को देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है इस बात को सुनकर दशरथ बोल पड़ते है जो रेती तेरे सामने पड़ी है उसे ही देदो इस बात को सुनतेही सीता वैसा ही करती है उतने में वह हाथ अदृश्य हो जाते है उसी  प्रभु श्रीराम आते है और वह नजारा देखते हुए सीता से कहने लगते है क्या किया आपने ?
माँ सीता कहती जैसा उन्होंने कहा मुझे वैसा करना पड़ा  अगर आप को मुझपर विश्वास नहीं है तो आप इस बात के पुष्टि के लिए  इस वृक्ष पर बैठा हुआ कौआ , यह गाय और यह यमुना नदी को पूछ सकते है. प्रभु श्रीराम कौवे से पूछते है? कौआ बिना कुछ भी कहे चुपचाप बैठता है.

इसी तरह गाय और यमुना को पूछनेसे वह दोनों भी बिना जवाब दिए शांत हो जाते है.
यह घटना सत्य होते हुए भी प्रभु श्रीराम के सामने भय से चुपचाप बैठनेसे माँ सीता को क्रोध आता है और उन सबको श्राप देते हुए कौवेसे कहती है जितना तू ऊपर से काला है उतनाही अंदर से काला है मेरे शाप के कारण लोग तुझे अपशकुनी और अशुभ मानेंगे। हे गाय तू जीतनी पवित्र है, तेरा मुह पवित्र होते हुए भी  तू हर चीज का अच्छा-बुरा दोनों पदार्थ का सेवन करेगी मेरे श्राप के कारन  लोग तुझे मुह से अपवित्र मानेंगे और तो और लोग तुझे सामने से नहीं पूजेंगे.

और यमुना नदी को यह श्राप देती है की जहाँतक पूर्व और पश्चिम तक मेरी दृष्टी पड़ेगी वहाँतक ही तू बहेगी उसके आगे तू सूख जाएगी। यह सब दृश्य श्रीराम देखते ही रह जाते है और उनको सीता की बात सच लगती है और वे इन सभी श्रापित से चुप रहनेका कारण पूछते है ? तब वे कहते है आपके सामने हम सत्य बोलनेकी हिम्मत नही जुटा पाए  मेरे कारण आप को शाप मिला यह बात श्रीराम के दुखित कराती है , और वे सीता से श्राप को वापस लेने की विनंती करते है परंतु सीता श्राप को वापस लेने से इंकार करती है, प्रभु श्रीराम पुनः सीता से उपशाप की विनंती करते है।
Pindapradan, Crow, Kaua
पिण्डप्रदान 

पिंड को कौआ छूने के पीछे का कारण और कुछ रोचक तथ्य

तब माता सीता उन सभी को उपशाप देती है ;- हे काक ( कौआ) अगर लोग तुझे अपशकुनी मानते हुए भी वे लोग 10 वे, 13वे दिन , श्राद्ध के दिन और पितृपक्ष के महालय में तेरे नाम का भोग निकालकर रखेंगे तेरी राह देखेंगे , तुझे भी आमंत्रित करेंगे तेरे भोजन के सिवाय वे भोजन नहीं करेंगे, उस पिंड को तेरे स्पर्श से ही मुक्ति मिलती है , तेरी महानता बढ़ेगीइसीलिए हम श्राद्ध का खाना या पिंड कौए को रखते है.
सीता गाय को कहती है अगर तू कुछ भी खाए या तेरी मुख की पूजा ना करे फिर भी लोग तेरी पूँछ की पूजा करेंगे तेरा मूत्र पवित्र और शुद्ध मानेगे जिसके प्राशन से सारे रोग दूर होंगे.
और यमुना नदी को यह उपशाप देती है की जो लोग यमुना नदी तटपर कर्म-कांड , पूजा, श्राद्ध आदि कर्म करेंगे तो उनका कर्म सफल होगा , फिर से उनको वह कर्म दोहराने की जरुरत नहीं पड़ेगी. आज भी आप देख सकते है यमुना नदी का मध्य भाग सूखा हुआ है.

जैसे हमने पूर्व लेखन में कहा था इन पंद्रह दिनों में पितरों  का श्राद्ध , तर्पण, दान-धर्म किया जाता है.  धर्मशास्त्र ले अनुसार कुछ नियम भी लागु होते है कहा जाता है इन नियमोंका पालन करनेसे हमारा कर्म सफल होता है, पितर सतुंष्ट होकर आशीर्वाद देते है. पितरोंके सन्तुष्टता के लिए इन नियमोंका पालन करना अनिवार्य है !


श्राद्ध के नियम 

1. धर्मशास्त्र के अनुसार इन पंद्रह दिनों में शरीर की तेल से मालिश ना करे, पान ना चबाए और ना खाए, दाढ़ी या सर के बाल, नाखून  ना काटे.
2. श्राद्ध करनेके पश्चात् , या श्राद्ध के भोजन के पश्चात् स्त्री से समागम ना करे. ऐसा करनेसे पितर नाराज हो जाते है.
3. श्राद्ध के दिन या इन पंद्रह दिनों में बाहर का खाना ना खाए , मसूर की दाल, चने की दाल, लहसुन, प्यास, काल जीरा, काले उडद की दाल, काला नमक, इन चीजोंका उपयोग भोजन में ना करे.
4. श्राद्ध के दिनोमे ताँबे के बर्तन का उपयोग अधिकतर प्रमाण में करे. श्राद्ध कर्म के समय कमल, चमेली, तुलसी और मके के फूल चढानेसे पितर संतुष्ट होते है.
5. हिन्दू धर्म के अनुसार श्राद्ध के  कुछ प्रतीक माने गए है जैसे की दर्भ ( एक प्रकार की  सुखी हुई लंबू घास ), काले तिल, गाय, कौआ , कुत्ता और अलसी के बीज.
6. कौआ यमराज या मृत्यु का प्रतीक कहा जाता है , शकुन-अपशकुन के विषय में ज्ञात होता है.
7. धर्म ग्रन्थ के अनुसार गौ माता ही है जो मनुष्य को मृत्यु के पश्चात् वैतरणी नदी पार कराती है. इसीलिए श्राद्ध का भोजन या श्राद्ध के दिन गाय को खिलाया जाता है और तो और अधिकतर आज भी हरदिन भोजन से पहले गाय को खिलाया जाता है.
8. हिन्दू धर्म के अनुसार दर्भ ( पवित्र घास ) के अग्र भाग में ब्रम्हा, मध्य में विष्णु और अन्त्य भाग में शिव जी का निवास होता है इसलिए इसे पवित्र और शुभ माना जाता है जिसका उपयोग कर्मकांड में किया जाता है.
हिन्दू धर्म के अनुसार श्राद्ध को पवित्र और शुभ माना जाता है , अधिकतर जनसामान्य लोग इसे अशुभ कर्म मानते है. परंतु जिस कर्म में अपने मृत माता-पिता के स्मरणार्थ श्राद्ध,तर्पण,दान-धर्म और पिंड प्रदान किया जाता हो भल वह कर्म कैसे अशुभ हो सकता है ? चाहे जो भी हो परंतु मनुष्य को अपने मृत माता-पिता का श्राद्ध करना आवश्यक है.

कुछ और ध्यान रखनेवाली  बाते


                                                       त्रीणी श्राद्धे पवित्राणि दौहित्र: कुतपस्तिला: !
                             वज्र्याणि प्राह राजेंद्र क्रोधोध्वगमनं त्वरा !!  (निर्णय सिंधु)
अर्थात;- बेटी का बेटा, दोपहर का समय और काले तिल इन बातोंको श्राद्ध कर्म में अधिक पवित्र और शुभ माना गया है. इसले अलावा श्राद्ध के समय क्रोधित होना, जल्दबाजी करना,या यात्रा करना इनको वर्ज्य और अशुभ माना गया है.
                               परकीय प्रदेशेषु पितृणां निवषयेत्तुय: !
                             तद्भूमि स्वामि पितृभि: श्राद्ध कर्म विहन्यते !!
श्राद्ध कर्म पितरोंको संतुष्ट करने का साधन है, शास्त्र के अनुसार अपने घर में ही श्राद्ध करना अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है. किसी अन्य के घर में श्राद्ध करना अनुचित कहा गया है. जिस जगह पर किसीका उत्तरदायित्व ना हो , या किसी का स्वामित्व ना हो वैसे जगह पर श्राद्ध कर सकते है. कहा जाता है की किसी अन्य व्यक्ति के घर में किया गया श्राद्ध अधिक फलदायी नहीं होता.


“तीर्थदृष्टगुणं पुण्यं स्वगृहे ददत: शुभे” इस शास्त्र वचन के अनुसार किसी पुण्य क्षेत्र या तीर्थ क्षेत्र में किए जानेवाले श्राद्ध से आठ गुना फल खुद के घर में करनेसे मिलता है.
                                आयु: पुत्रान्यश: स्वर्ग कीर्तिपुष्टि बलंश्रियम्
                               पशूनसौख्यम् धनं धान्यं प्राप्नुयात पितृ पूजनात् ।।
पितरोंकी पूजा करनेसे आयु,पुत्रप्राप्ति, धैर्य, यश,कीर्ति,मोक्ष, लक्ष्मी, पशु इत्यादीयोंकी प्राप्ति होती है.