नवरात्रि
का त्यौहार पूरे
भारत वर्ष में
मनाया जाता है
विशेषकर दुर्गा पूजा , काली
पूजा , चंडी पूजा
इन नामोसे अलग-अलग प्रान्तों
में और अलग-अलग प्रथा
के अनुसार आराधना
की जाती है
नवरात्रि का त्यौहार
सप्टेंबर माह के
अंत में या
अक्टूबर माह के
प्रारम्भ में शुरू
होता हिन्दू पंचांग
के अनुसार आश्विन
माह के शुक्ल
प्रतिपदा से शुरुवात
होती है. प्रतिपदा
से लेकर नवमीतक
और दशमी का
दिन विजय का
दिन कहा जाता
है जिसे विजयादशमी
दशहरा कहते है
क्यों की इस
दिन प्रभु श्रीराम
ने रावण का
वध किया था
और माँ दुर्गा
ने महिषासुर का
संहार किया था
!
नवरात्रि तथा महिषासुर मर्दिनी की कहानी
पुराण के अनुसार
महिषासुर नामक दानव
था. जो एक
भैंस रुपी असुर
था. महिषासुर के
तपस्या से प्रसन्न
होकर देवताओ ने
उसे अजय होने
का वरदान दिया.
इस वरदान को
प्राप्तकर महिषासुर वरदान गलत
उपयोग कर उत्पात
मचाने लगा. सभी
देवता इसके उत्पात
से भयभीत हो
गए, सभी देवताओ
का स्थान हरण
कर लिया पार्वती,
लक्ष्मी और सरस्वती
और सभी
देवताओ ने मिलकर
अपने बल से
माँ दुर्गा की
रचना की. महिषासुर
का वध करने
के लिए सभी
देवताओ ने अपने-अपने अस्त्र
दुर्गा को प्रदान
किए. अश्विन माह
के नौ दिनों
में महिषसुर के
साथ संग्राम हुआ
और अन्तत:
महिषासुर माँ दुर्गा
के हाथो मारा
गया. तबसे माँ
दुर्गा महिषासुर मर्दिनी नाम
से प्रख्यात हुयी
!
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माँ दुर्गा
इस कथा के
अनुसार दुर्गम नाम का
एक राक्षस था.
उसने कठोर तपस्या
करकर ब्रम्हा जी
से वर प्राप्त
किया. उस वरदान
से उसने चारो
वेद, पुराण और
सभी ग्रंथो पर
कब्ज़ा करके उन्हें
छुपाकर रख दिया.
जिस कारण वैदिक
कर्म , यज्ञ-यागादि
होना बंद हो
गए सभी तरफ
हाहाकार मच गया.
जीव-जंतु, पशु-पक्षी मरने लगे
और प्रकृति का
विनाश होने लगा.
सृष्टि को बचने
के लिए सभी
देवताओ ने नौ
दिनतक माँ भगवती
का व्रत रखकर
माँ की पूजा
की और माता
से सृष्टि को
बचाने की प्रार्थना
की. माँ ने
उनकी प्रार्थना को
सुनकर दुर्गम दानव
से घमासान युद्ध
कर उसका वध
कर दिया और
सृष्टि को नाश
होते हुए बचाया.
दुर्गम अर्थात पर्वत उतना
बड़ा और कष्टकर
ऐसा होता है
दुर्गम राक्षस का वध
करनेसे माता को
दुर्गा नाम से
नाम से पुकारते
है और इस
दिन से नवरात्रि की पूजा
का तथा त्यौहार आरम्भ
हुआ !
नवरात्री और इतिहास
तथ्यों के अनुसार
तकरीबन ३००० साल
से देवी नवरात्रि
का उत्सव मनाया
जा रहा है
इतनाही नहीं बल्कि
चैत्र माह में
भी देवी का
उत्सव मनाया जाता
है उसे भी
देवी नवरात्रि कहा
जाता है परंतु
यह त्यौहार अधिकतर
यह दक्षिण भारत
में प्रचलित है.
१. प्रबु श्रीराम के
हातो रावण का
वध हो इस
उद्देश्य से नारद
मुनि ने श्रीराम
को नवरात्रि का
व्रत करने की
सलाह दी थी.
इस व्रत के
आचरण से श्रीराम
के हातो आख़िरकार
रावण का वध
हुआ.
२. महिषासुर नामक राक्षस
से माँ भगवती
ने प्रतिपदा से
लेकर नवमी तक
युद्ध किया नवमी
के रात असुर
को मार दिया.
उस दिन से
माँ को महिषासुर
मर्दिनी नाम से
जाने जाते है।
३. महिषासुर के वध
के पूर्व देवी
ने अनेक दानवो
का संहार किया
था जैसे की
रक्तबीज,चण्ड-मुंड,
शुम्भ-निशुम्भ, धूम्रलोचन
आदि..
४. मार्कण्डेय ऋषि द्वारा
रचित मार्कण्डेय पुराण
में देवी का
वर्णन किया गया
है जिसे सप्तशती
कहते है ७०० श्लोको
में देवी की
महती गायी गयी
है.
५. कलौ "चंडी विनायकौ
" कलियुग में माँ
भगवती और गणेश
शीघ्र फल देनेवाले
भगवान माने जाते
है जिनकी आराधना
से मनुष्य के
सारे दुःख-कष्ट
दूर हो जाते
है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति
होती है।
नवरात्रि की विशेषता और परंपरा
जब-जब
धरतीपर धर्म संकट
आता है तब-तब देव
या देवी अवतार
लेते है और
उस दुष्ट शक्ति
का संहार करते
है देवोमे जैसे
ब्रम्हा,विष्णु और महेश
जी को
सृष्टि-स्थिति और पालन
कर्ता है वैसे
ही माँ दुर्गा
देवी को विशेषकर
तीन स्वरुपो में
देखा गया है
जो की 1.महाकाली-
शत्रुओंका , दुष्ट शक्ति का
संहार करनेवाली २.
महालक्ष्मी- धन-धान्य,
संपत्ति, यश तथा
कीर्ति देनेवाली और महा
सरस्वती- विद्या दात्री, कला,ज्ञान, भाषा तथा
बुद्धि देनेवाली. इन
नौ दिनों में
हर एक दिन
अलग-अलग देवी
की पूजा की
जाती है उत्तर
भारतीय परंपरा के अनुसार
देवी की आराधना
इन
नामो से होती
है.
१.शैलपुत्री २. ब्रम्ह्चारिणी ३. चंद्रघंटा ४. कुष्मांडा ५. स्कन्दमाता ६. कात्यायनी
७. कालहंत्री ८. महागौरी ९. सिद्धिदात्री. दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार देवी की उपासना इन स्वरुपो में की जाती है. १. बाला त्रिपुरसुन्दरी २. गायत्री ३. धनलक्ष्मी ४. अन्नपूर्णा ५. शाकम्भरी ६. ललिता देवी ७. सरस्वती ८. दुर्गा ९. महिषासुर मर्दिनी.भले ही परंपरा क्यों न अलग हो परंतु इन नौ दिनों में देवी की पूजा बड़े धूम-धाम से होती है कहा जाता है की इन नौ दिनों में अधिक सात्विक ऊर्जा होती है और भक्तोंपर देवी शीघ्र अनुग्रह कराती है. विशेषकर इन दिनों में देवी चरित्र ( सप्तशती ) का पाठ, चंडी हवन, नवार्ण मन्त्र का जाप करके देवी को प्रसन्न किया जाता है.
१.शैलपुत्री २. ब्रम्ह्चारिणी ३. चंद्रघंटा ४. कुष्मांडा ५. स्कन्दमाता ६. कात्यायनी
७. कालहंत्री ८. महागौरी ९. सिद्धिदात्री. दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार देवी की उपासना इन स्वरुपो में की जाती है. १. बाला त्रिपुरसुन्दरी २. गायत्री ३. धनलक्ष्मी ४. अन्नपूर्णा ५. शाकम्भरी ६. ललिता देवी ७. सरस्वती ८. दुर्गा ९. महिषासुर मर्दिनी.भले ही परंपरा क्यों न अलग हो परंतु इन नौ दिनों में देवी की पूजा बड़े धूम-धाम से होती है कहा जाता है की इन नौ दिनों में अधिक सात्विक ऊर्जा होती है और भक्तोंपर देवी शीघ्र अनुग्रह कराती है. विशेषकर इन दिनों में देवी चरित्र ( सप्तशती ) का पाठ, चंडी हवन, नवार्ण मन्त्र का जाप करके देवी को प्रसन्न किया जाता है.