देवी के नौ अवतार तथा विजय दशमी दशहरा का महत्व
१. शैलपुत्री :- शैलपुत्री"
अर्थात हिमालय पर्वतराज की
पुत्री. शिव की
शक्ति या सती
कहलाती है. इस
अवतार में माँ
ने सफेद वस्त्र
पहने हुए हाथ
माला और कमंडलु
धरे हुए है. पर्वतराज
हिमालय की पुत्री
होने से यह
शैलपुत्री कही जाती
है.
२. ब्रम्ह्चारिणी :- यह
नाम ब्रम्हा से
प्राप्त हुआ ऐसा
कहा जाता है.
अपने भूल प्रायश्चित्त
करनेवाली शिव की
सती पार्वती का
यह दूसरा रूप
है. इसके आराधना
से तप, त्याग,
वैराग्य, सदाचार, और संयम
की अभिवृद्धि होती
है !
३. चंद्रघंटा :- यह
माता का तीसरा
स्वरुप है यह
अवतार सुंदरता और
धैर्यता को दर्शाता
है. यह रूप
शांतिदायक और श्रेयस्कर
कहलाता है. युद्ध
के लिए शस्त्रात्र
से अलंकृत दशभुजोसे
सुशोभित दिखाई देती है
!
४. कूष्मांडा :- यह
अवतार कूष्मांडा या
अष्टभुजा नाम से
भी जाना जाता
है. पुराण के
अनुसार अपने कील-कील हँसी
से ही सृष्टि
की रचना करनेसे
इसे सृष्टि कृत्रि
के रूप में
आराधना की जाती
है. इस दिन कुम्हड़े
को अधिक महत्व
दिया जाता है.
कुम्हड़ा को देवी
का स्वरुप माना
जाता है. माँ
भगवती अपने हाथो में
कमण्डलु, धनुष, तीर, कमल,अमृत से
भरा कलश, चक्र,
और गदा से
धारण की हुयी
है !
५. स्कन्दमाता :- माँ
को इस अवतार
में सिंह पर
विराजित अपने एक
हाथ में कमल
और अपने पुत्र
स्कन्द को लिए
हुए देखा
गया है. देव
सेना के सेनाधिपति
कार्तिकेय की माता
होनेसे इन्हें स्कंदमाता कहा
जाता है. स्कन्द
यह कार्तिकेय का
नाम है.
Durga |
६. कात्यायनी :- चार
भुजाओंसे सुशोभित सिंह की
सवारी करते हुए
सोने जैसा वर्ण
से त्रिनेत्र से
मन्दस्मित हास्य करते हुए
दिखाई देती है
माँ के हाथो
में कमल, और
खड्ग के साथ-साथ अभय
हस्त भी देख
सकते है.
७. कालरात्रि :- इस
दिन माता ने
अपना उग्र रूप
दिखाया है अत्यंत
भयंकर रूप होते
हुए भी माँ
ने अपने सच्चे
भक्त को अभय
का आशीर्वाद दिया
है. इस अवतार
को काली अवतार
भी कहा जाता
है जिसमे माँ
का स्वरुप कुछ
है - जुबान बाहर
किए हुए काले-नीले
शरीरवाली , हाथ में
खड्ग, चक्र,गदा,
त्रिशूल, शंख, और
राक्षस की कतई
हुयी गर्दन लिए
, कंठ में हड्डियोंकी
माला पहने हुए
त्रिनेत्र के साथ
भयंकर रूप में
देखा गया है.
८. महागौरी :- यह अवतार माँ का अत्यंत सुन्दर और शांत कहा जाता है. इस अवतार में माता का वर्ण चाँद के तरह शुभ्र ( सफेद) हरे रंग के वस्त्र पहनी हुयी बैल की सवारी करते हुए हाथ में डमरू, त्रिशूल दिखाई देते है और दो हाथ अभय और वरद हस्त है. ऐसा कहा जाता है की माँ महागौरी की आराधना करनेसे अलौकिक सिद्धि की प्राप्ति होती है.
९. सिद्धिदात्री :- यह माँ का अंतिम अवतार है साधक को इन नौ दिनों में हर तरह की सिद्धि की कृपा करनेसे माँ को सिद्धिदात्री नाम से पुकारा जाता है. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अष्ट सिद्धियां है जैसे की अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्या, ईशित्व और वशित्व माँ के आराधना से सभी सिद्धियोंकी प्राप्ति होती है और सभी सिद्धिया प्रदान करती है इसीलिए सिद्धिदात्री कहा जाता है. इस अवतार माँ सफेद कमल पर विराजित हुए हाथ में शंख,चक्र, गदा, और कमल धारण किए हुए दिखाई देती है इस दिन देव, गन्धर्व, यक्ष, असुर, साधू-सन्यासी, ऋषि-मुनि माँ की पूजा करते है. इस रूप में माता ने केवल लाल रंग के वस्त्र पहनी हुई है. यह विशेष माना जाता है !
८. महागौरी :- यह अवतार माँ का अत्यंत सुन्दर और शांत कहा जाता है. इस अवतार में माता का वर्ण चाँद के तरह शुभ्र ( सफेद) हरे रंग के वस्त्र पहनी हुयी बैल की सवारी करते हुए हाथ में डमरू, त्रिशूल दिखाई देते है और दो हाथ अभय और वरद हस्त है. ऐसा कहा जाता है की माँ महागौरी की आराधना करनेसे अलौकिक सिद्धि की प्राप्ति होती है.
९. सिद्धिदात्री :- यह माँ का अंतिम अवतार है साधक को इन नौ दिनों में हर तरह की सिद्धि की कृपा करनेसे माँ को सिद्धिदात्री नाम से पुकारा जाता है. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अष्ट सिद्धियां है जैसे की अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्या, ईशित्व और वशित्व माँ के आराधना से सभी सिद्धियोंकी प्राप्ति होती है और सभी सिद्धिया प्रदान करती है इसीलिए सिद्धिदात्री कहा जाता है. इस अवतार माँ सफेद कमल पर विराजित हुए हाथ में शंख,चक्र, गदा, और कमल धारण किए हुए दिखाई देती है इस दिन देव, गन्धर्व, यक्ष, असुर, साधू-सन्यासी, ऋषि-मुनि माँ की पूजा करते है. इस रूप में माता ने केवल लाल रंग के वस्त्र पहनी हुई है. यह विशेष माना जाता है !
दशहरा:- विजय दशमी
दशहरा या दसरा यह नवरात्रि का १०वा
आखिरी दिन कहा
जाता है इस
दिन त्यौहार की
समाप्ति होती है.
माँ दुर्गा ने
नौ दिन तक
महिषासुर से युद्ध
कर इस दिन
उसका वध कर
सभी देवताओं को
उसके दुष्ट शक्ति
से बचाया था
आज के दिन
अच्छाई की जीत
हुई थी. माँ
दुर्गा शक्ति तथा ऊर्जा
स्वरुप होने सभी
पृथ्वी वासियोंको माँ की
कृपा से दुष्ट
शक्ति बुराई के
अंधकार से मुक्ति
मिली थी.
रामायण:- इस दिन
प्रभु श्रीराम ने
दशानन रावण का
वध किया था.
और माता सीता
को उसके कैद
से छुडवाया था.
और एक तरफ बुराई
पर अच्छाई के
प्रतीक रावण का
पुतला इस दिन
समूचे देश में
जलाया जाता है
अधिकतर यह प्रथा
उत्तर भारत देखने
को मिलती है. रावण
को मरने से
पूर्व राम ने
नवरात्रि का व्रत
पूजा की थी
माँ दुर्गा की
आराधना से उनको
विजय का वरदान
प्राप्त हुआ था.
रावण का दहन
आज भी बड़े
धूम-धाम से
मनाया जाता है.
दुर्गा मूर्ति विसर्जन का
कार्यक्रम भी जोरोंसे
किया जाता है.
महाभारत:- दुर्योधन ने युधिष्ठिर को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवे वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी. तेरहवे वर्ष यदि उनके होने ज्ञात होता तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता. इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक खेजड़ी ( शमी) वृक्ष के नीचे छुपाकर रख दिया था तथा स्वयं वृहन्नला के वेश में राजा विराट के यह सेवा कर ली थी. जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र दृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने शस्त्र ( हथियार) उठाकर शत्रुओ पर विजय प्राप्त की थी. शमी वृक्ष या शमी के पत्तो को शुभ तथा विजय का संकेत माना जाता है. अधिकतर सभी पूजा में शमी के पत्तो का प्रयोग करने की सलाह दी गयी है.
विजय
दशमी का महत्व:- देश
के कोने-कोने
में यह विभिन्न
रूप से मनाया
जाता है और कई
अन्य स्थानोंपर शस्त्र-अस्त्र तथा वस्तु-वाहनादि की पूजा
की जाती है,
कई स्थानोंपर खेजड़ी
(शमी) के पत्ते
सोने के रूप
में आपस में
आदान-प्रदान किया
जाता है,
नए कपडे आभूषण
पहने जाते है. विशेषकर यह त्यौहार
पाप पर पुण्य
की, अधर्म पर
धर्म की और
असत्य पर सत्य
की जीत का
प्रतीक है इसके
अलावा यह शरद
ऋतु का पहला
त्यौहार है जो
अलग-अलग संकेत
को दिखलाता है
शरद ऋतु से
पहले वर्षा ऋतु
होने से वर्षा ऋतु के
कारण क्षत्रिय लोग
तथा व्यापारी अपनी
यात्रा स्थगित काट देते
है और शस्त्रात्र
को बंद कर
रख देते है
और शरद ऋतु
का महीना सुरु
होते ही शस्त्रो
की पूजा कर
उसे तेज बना
लेते है, इस
दिन सभी धर्म
ग्रंथो की , शास्त्र-पुराण, वेद आदि
ग्रंथो की पूजा
की जाती है.
नए से व्यापर
शुरू करनेके लिए,
शिक्षा, संगीत, शास्त्र, शस्त्र,
इत्यादि कला और
विद्या का ज्ञान
अर्जित करने के
लिए आदि कार्यो
के लिए यह
दिन शुभ माना
जाता है.इस
दिन श्रवण नक्षत्र
का योग और
भी अधिक शुभ
माना जाता है. साल
में ३/२ मुहूर्तो में से
विजय दशमी भी
एक सबसे बड़ा
शुभ मुहूर्त है.