Monday, February 25, 2019

"Significance of Svaha" हवन कुंड में आहुति देते समय क्यों कहाँ जाता है "स्वाहा"

स्वाहा

स्वाहा यह शब्द हमने बहुत बार सुना है कभी मंदिर में या किसी पंडित जी को पूजा या हवन करते समय या कभी-कबार अपने खुद के  घर में हवन कराते समय या किसी के पूजा में हिस्सा लिए जब. जब अग्नि में आहुति दी जाती है तब स्वाहा कहकर हवन सामग्री या हविर्द्रव्य को अग्नि में समर्पित किया जाता है. स्वाहा ऐसा केवल हवन, यज्ञ, या नित्य अग्निहोत्र करते समय ही उपयोग किया जाता है. इसके अलावा कुछ ऐसे बीज मन्त्र होते है जिनके अंत में स्वाहा शब्द का प्रयोग केवल  जाप करते समय ही किया जाता है.


यज्ञ में स्वाहा कह के आहुति देने की प्रथा हजारों सालों से चलती आ रही है. यज्ञ कर के भगवान् को प्रसन्न करने की परंपरा ऋषि-मुनि और राजा-महाराजाओ से प्रारंभ हुयी है. सत्ययुग से लेकर कलियुग तक अर्थात आज तक चलते आ रही है. स्वाहा शब्द के बिना यज्ञ पूर्ण नहीं होता वह आहुति उस यज्ञ के प्रतिनिधि देवता तक नहीं पहुंचती.

Agni, Svaha, Ahuti
Svaha- Ahuti


ऋग्वेद काल के समय ईश्वर और मनुष्य के बीच का साधन अग्नि को चुना गया था अर्थात जो कोई भी अग्नि में आहुति समर्पित करता है वह अग्नि द्वारा उस प्रतिनिधि ईश्वर तक पहुंचती है अग्नि के तेज में समर्पित किया गया सब कुछ पवित्र हो जाता है.

“स्वाहा”  का अर्थ है  ईश्वर को जो पसंद है वह निस्वार्थ मन  और भक्ति से उस परमात्मा को अर्पण करना
मान्यता के अनुसार किया गया वह हवन तबतक सफल नहीं होता जबतक हवन द्रव्य भगवान् स्वीकार नहीं करते। स्वाहा कहने पर ही ईश्वर उस हवन द्रव्य को स्वीकार करते है
अग्नि और स्वाहा से जुड़े अनेक कथाएँ पुराणों में देखने को मिलती है जैसे श्री मद्भागवत, शिव पुराण, अग्नि पुराण ऐसे अनेक ग्रंथो में वर्णन किया गया है. सभी देवताओं के जोड़ी को नमन करते समय जैसे की लक्ष्मी- नारायणाभ्यां नम:, पार्वती-परमेश्वराभ्यां नम: वैसे ही  "स्वाहा वैश्वानराभ्यां नम:" ऐसा कहा जाता है.
वैश्वानर का अर्थ है अग्नि. अग्नि और स्वाहा देवी को हमारा प्रणाम !

पौराणिक कहानी:-  पुराण के कथानुसार 'स्वाहा" यह राजा दक्ष  प्रजापति की कन्या थी जिसका विवाह अग्नि के साथ किया गया. अग्नि भगवान् स्वाहा के माध्यम से हवन सामग्री स्वीकार करते है और उस हवनीय द्रव्य को आगे तक पहुंचाते है.
और एक कहानी के अनुसार स्वाहा प्रकृति की बेटी थी भगवान्  श्रीकृष्ण के कहने पर स्वाहा का विवाह अग्नि से करवाया गया अग्नि भी प्रकृति का एक एहम हिस्सा है जो पांच महाभूतों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है जो मनुष्य के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है. श्रीकृष्ण ने स्वाहा को वरदान दिया की  आने वाले समय में भूलोक में जो कोई भी मनुष्य यज्ञ/हवन करेगा उसमे दी जाने वाली सामग्री  या उस आहुति को तेरे द्वारा ही समर्पित की जाएगी मंत्र के अंत में स्वाहा कहकर आहुति दी जाएगी और वह सामग्री यज्ञ के प्रतिनिधि भगवान् तक पहुंचाई जाएगी बिना स्वाहा कहा गया मन्त्र और हवन सफल नहीं होगा. उस समय से यज्ञ में स्वाहा कहकर आहुति देने की प्रथा आरम्भ हुयी.
Havan/Yagya, Ahuthi, Svaha
Havan/Yagya


पुराणों में अनेक कथा प्रचलित है जो भी हो इन सबसे यह ज्ञात होता है की अग्नि में जो भी सामग्री समर्पित की जाती है वह स्वाहा कहकर ही देनी चाहिए जिससे वह द्रव्य निश्चित रूप से ईशवर तक पहुँच सके.

कहा जाता है की अग्नि देव को 2 पत्नियां है एक स्वाहा और दूसरी स्वधा. अधिकतर स्वधा शब्द का उपयोग श्राद्ध, पक्ष, पिण्डप्रदान या पितरो की पूजा करते समय किया जाता है. जैसे बिना स्वाहा के यज्ञ की आहुति भगवान् तक नहीं पहुंचती वैसे ही बिना स्वधा के उच्चार से श्राद्ध का अन्न पितरों तक नहीं पहुंचता। केवल श्राद्ध के दौरान ही स्वधा शब्द का प्रयोग किया जाता है. जैसे की पितृ तर्पण, भोजन समर्पित करते समय और पितरो से सम्बंधित हवन करते समय. श्राद्ध में अग्नि को समर्पित करनेवाले द्रव्य को कव्य कहा जाता है. 

हवन करना या यज्ञ में निस्वार्थ रूप से समर्पण करना यह त्याग की भावना को दर्शाता है और जो कोई भी त्याग की भावना रखता है वह मोह और लोभ से खुद को संभाल सकता है. अधिक लोभ से अनेकोंने दुःख को झेला है.


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