Friday, March 15, 2019

Interesting story behind the name of Govinda

तिरुपति बालाजी 

     क्या आप जानते है तिरुपति बालाजी को गोविंदा नाम से क्यों पुकारा जाता है?

तिरुपति के बालाजी के दर्शन को जाते समय हरेक भक्त गोविंदा-गोविंदा कहकर नामोच्चार करता है. Tirupati के बालाजी दक्षिण भारतीय भक्तो के लिए वेंकटेश, श्रीनिवास या वेंकटरमणा कहलाते है.
बालाजी को गोविंदा नाम आने के पीछे एक अद्भुत और आश्चर्यजनक कथा हैश्री विष्णु भगवान के 24 प्रिय नामों में से 4था नाम है गोविंदा.
माता लक्ष्मी देवी को ढूंढते हुए भगवान विष्णु एक सामान्य मानव का रूप लेकर जब भूलोक पे आते है तब एक घटना घडती है. जब वह भूलोक पर आते है बहुत थकान से उन्हें  भूक और प्यास लगती है और वे ऋषि अगस्त्य के आश्रम की ओर  प्रस्थान करते है उनको यह ज्ञात था की अगस्त्य ऋषि के पास बहुत गाय से भरी एक गोशाला है वे आश्रम पर जाते है और कहते है. 
हे मुनिवर! मुझे भूक और प्यास लगी है मै  बहुत दूर से आया हु. और मै यहाँपर कुछ दिन रहना चाहता हु कृपया मुझे आश्रय दीजिए और हर दिन भोजन की व्यवस्था के लिए एक गाय दीजिए मुझे गाय का दूध अधिक प्रिय है
अगस्त्य ऋषि हँसकर कहते है, मुझे पता है की आप इस मानव रुप में भगवान् विष्णु हो. मुझे अत्यंत प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है आप को यहापर देखकर और मुझे यह भी पता है की आप मेरी भक्ति की परीक्षा लेना चाहते है.
अगस्त्य ऋषि कहते है हे नाथ ! मुझे कोई दिक्कत नहीं है आप को एक गाय देने में परन्तु मेरी एक शर्त है. मैं उन्हें ही इन पवित्र गाय को देता हु जो अपनी पत्नी के साथ मुझे माँगने आते है.
हे भगवन! जब आप माँ लक्ष्मी के साथ आएंगे मेरे आश्रम पर गाय दान के लिए तब मै यह गाय आप को दे दूंगा.
भगवान इस बात से सहमत होकर वहां से चले जाते है. कुछ दिनों के बाद भगवान् श्रीनिवास अर्थात Balaji का विवाह देवी पद्मावती से होता है और वे पद्मावती को लेकर अगस्त्य ऋषि के आश्रम पर आते है परन्तु उस समय ऋषि आश्रम में नहीं थे. अगस्त्य ऋषि के शिष्य भगवान् से पूछते है की आप कौन है ? और किस कार्य के लिए यहापर आये है? तब बालाजी कहते है मै अभी मेरी पत्नी के साथ आया हु, पुरानी हकीकत बताते हुए एक गाय दान में देने की अपेक्षा करते है. शिष्य कहते है - हमारे गुरु ऋषि अगस्त्य अभी आश्रम में नहीं है और उनकी आज्ञा के बिना हम यह गाय नहीं दे सकते कृपया आप फिर से आइएगा।

Tirupati Balaji
Tirupati Balaji

भगवान् कहते है - मै इस पुरे विश्व का पालन करता हु आप मुझपर विश्वास रखकर एक गाय दे सकते है मै फिर एकबार नहीं सकता. परन्तु अगस्त्य ऋषि के शिष्योंने उस बात को अनसुहा करते कहा हम गुरु आज्ञा के बिना दे नहीं सकते.
भगवान् हसते हुए कहते है: मेरी आने की खबर अपने गुरु को दीजिए ऐसा कहकर वहां से वेंकटाद्रि सात पर्वतों की ओर प्रस्थान करते है. कुछ  समय के बाद अगस्त्य ऋषि आश्रम में आते है, आते ही शिष्योंद्वारा पता चलता है की भगवान् विष्णु अपनी पत्नी के साथ आश्रम पर आये थे.
ऋषि बहुत निराश होते हुए कहने लगते है जब भगवान् अपने पत्नी के साथ गाय लेने के लिए आये थे परन्तु मुझे उनकी सेवा और अतिथि सत्कार करने का योग नहीं मिला ऐसा कहते हुए गोशाला से एक पवित्र गाय को लेकर भगवान् को ढूंढते हुए आश्रम से निकलते है .

थोड़े ही दूर जाते पद्मावती और भगवान श्रीनिवास दिखते है.
ऋषि अगस्त्य "गो इयं दा, गो इयं दा (यह आप की दान की गाय लेलो) ऐसे पुकारते हुए भगवान् के पीछे दौड़-दौड़ जाते है. श्रीनिवास जी को सुनाई नहीं देता अगस्त्य ऋषि ने फिर से आवाज को उठाते हुए फिर से गो इयं दा कहते हुए पुकारते है भगवान् की माया से उन शब्दों का रूपांतर गोविंदा नाम में बदल जाता है जैसे ही ऋषि गो इयं दा कहते वह गोविंदा,गोविंदा कहके सुनाई देता बहुत बार गोविन्द का नामस्मरण करने के बाद भगवान् बालाजी ऋषि अगस्त्य की ओर मुड़ के देखते है और उनको नजदीक बुलाकर गाय को ले लेते है और कहते हे.  

मुनिवर ! आप ने भक्ति में लीन होकर मुझे सबसे प्रिय गोविंदा  नाम से १०८ बार पुकारा है इस आनेवाले कलियुग में मै मूर्ति रूप बनकर इन्ही वेंकटाचल, नीलाद्रि पर्वतो पर रहूँगा आनेवाले समय में यहांपर मेरा भव्य मंदिर बनेगा और भक्त लोग मुझे Govinda नाम से सम्बोधित करेंगे इतनाही नहीं सभी भक्त लोग इस पर्वत को चढ़कर मेरे दर्शन को आते समय वेंकटरमणा गोविंदा-गोविंदा ऐसे नामोच्चार करते आएंगे और जो कोई भी मनुष्य मेरे दर्शन के लिए गोविंदा का नाम स्मरण करते हुए  इन पर्वत या इन सीढियोंको चढ़के आता है मै उस भक्त के सभी दुःख,कष्ट दूर करके उसकी मनोकामना पूर्ण करूँगा. अगर कोई भक्त यहातक आने में असमर्थ है और वह मेरे नाम Govinda का गुण-गान करता है तब भी मै उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करता हु

हे मुनिवर! जब कोई भी मुझे गोविंदा कहकर पुकारेगा उसके पीछे आप के भक्ति को भी याद किया जायेगा क्यों की यह नाम के पीछे आप की निस्वार्थ भक्ति जो छुपी है.

तिरुपति और तिरुमला को जाने वाला हरएक भक्त गोविंदा का नामस्मरण करता है. बालाजी को इस कलियुग का भगवान् कहा जाता है.यहाँपर आनेवाले सच्चे भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है ऐसा लोगों में विश्वास है और यह अनुभव सिद्ध है.  

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