Tuesday, April 30, 2019

Seven holy places in Hinduism-2

सप्त पुरी (भाग 2)

आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित गया धर्मपीठ है यंहा 

1    5. कांची
      यह क्षेत्र दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित है. 
एक मान्यता के अनुसार जब सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी ने विष्णु को सम्बोधित करते हुए यज्ञ किया था उस यज्ञ में सम्मिलित हुए सभी लोगो के निवास के लिए देवोंके शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचाया गया क्षेत्र ही आज का कांचीपुरी है. यह क्षेत्र South भारत के Tamilnadu राज्य में है कांचीपुरम या कांची नाम से प्रख्यात है.
इस स्थान पर माँ पार्वती ने विष्णु के सम्मुख भक्ति-भाव से शिव जी की पूजा की थी. इस क्षेत्र में शिव-शक्ति और विष्णु का अधिष्ठान होने से यह अत्यंत पुण्य क्षेत्र है
कहा जाता है की काशी और कांची भगवान् शिव के 2 आँख है. आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित धर्मपीठ भी कांची में है जिसे कंचि कामकोटि पीठ कहा जाता है. पंचभूत लिंग क्षेत्रों में से पृथ्वीलिंग एकाम्रेश्वर नामक Famous शिवालय भी इसी स्थान पर है.


यँहा पे बसते है महाकाल 

  6. अवंतिका
      देवो के देव महादेव महाकालेश्वर नाम से इस क्षेत्र में बसे है. जिसे आज हम उज्जैन या उज्जनीयी नगरी कहते है यह क्षेत्र Madhya Pradesh (MP) में हैअवन्तिपुरी को आज उज्जैन नाम से सम्बोधित करते है. Ujjain मध्यप्रदेश की राजधानी है. इस क्षेत्र में द्वादश ज्योतिर्लिंगोमे से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग यहापर विराजमान है. स्कन्द पुराण में "अवन्त्य कांड" नामक भाग में इस क्षेत्र की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है. सबसे पहले इस क्षेत्र को महाकाल नाम था. समयानुसार कनकश्रृंग, अवन्ति, कुशद्वती, अमरावती ऐसे अनेक नाम दिए गए. इन सभी नामो के पीछे शिव की लीला से जुड़े अनेक प्रसंग है.
भगवान् श्री कृष्ण ने  इसी पवित्र स्थान पर महर्षि सांदीपनि से सभी विद्या प्राप्त की थी और गुरु-शिष्य परंपरा को स्थापित किया था. भगवान् महादेव ने इसी क्षेत्र में त्रिपुरासुर  का वध करके धर्म की स्थापना की थी. 
कविरत्न कालिदास को कालिका देवी ने दर्शन दी गयी गुफा भी इसी स्थान पर है आज भी हरसाल यहापर कालिदास उत्सव मनाया जाता है.
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पुण्यक्षेत्र 

चार धामों में से एक है यह धाम पुरी जगन्नाथ 

3    7.  पुरी-द्वारावती 
      यह स्थान 2 पुण्य क्षेत्रो से जुड़ा है. श्री कृष्ण द्वारा शासन किया गया क्षेत्र द्वारका जो Gujrat में है और जगन्नाथ नाम से प्रसिद्ध साक्षात् महाविष्णु का स्थान है स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण नीलमाधव के रूप में पुरी में अवतरित हुए जिसे पुरी या जगन्नाथ पुरी कहा जाता है जो आज Orissa में स्थित है. यह दो पवित्र क्षेत्रो का संगम है और यह २ क्षेत्र भगवान् श्री कृष्ण से जुड़े होने से इसे द्वारावती कहा जाता है.
द्वारावती को Dwaraka भी कहते है द्वारका क्षेत्र रैवतक पर्वत के समीप गोमती नदी के तट पर स्थित है. इस क्षेत्र में गोदान,गोपीचन्दन,गोमती तीर्थस्नान और गोपीनाथ का दर्शन अधिक विशेष है. जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य का उद्धार होता है वह क्षेत्र है द्वारका।

 महाम्भोधेस्तीरे कनक रुचिरे नील शिखरे !
वसन प्रसादान्त: सहज बलभद्रेण बलिना !!
सुभद्रा मध्यस्थ: सकलसुर सेवावसरदो !
                       जगन्नाथ: स्वामी नयन पथगामी भवतु मे !! (जगन्नाथ अष्टक)

अर्थ:- हे नाथ! विशाल सागर के किनारे सुन्दर और रमणीय ऐसे नीलाचल नामक पर्वत के शिखर से घिरे हुए रम्य आभा वाले श्री पुरी धाम में अपने बलशाली भाई बलभद्र जी तथा आप दोनों के मध्य स्थित बहन सुभद्रा जी के साथ विराजमान होकर सभी दिव्य मनुष्य आत्माओ , संत भक्तो को अपनी कृपा दृष्टी का रसपान करवा रहे है. ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथदर्शक हो और मुझे शुभ नयन दृष्टी प्रदान करे. 

यह जगन्नाथ अष्टक की पंक्तियाँ है इस स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य जी ने की है. इस स्तोत्र में शंकराचार्य जी ने भगवान् जगन्नाथ जी और नील पर्वत के समीप बसे हुए पुरी Jagannath Dham के महिमा का वर्णन है. पुरी जगन्नाथ धाम ४ प्रमुख धामों में से एक है. 
Puri jagannath भगवान् का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है. पुराण के अनुसार पुरी यह पृथ्वी की नाभि है. इस क्षेत्र में बलराम, श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा देवी इन तीनोंका मंदिर है. इस स्थान पर विराजित जगत के पालन करता श्री कृष्ण भगवान् को Jagannath Swamy कहा जाता है. वायु पुराण के अनुसार यह स्थान पितृ पूजा के लिए पवित्र और प्रसिद्ध है. हर साल ज्येष्ठ और आषाढ़ माह में होनेवाले जगन्नाथ Rathyatra और बहुदा रथयात्रा में लाखोंकी संख्या में भक्तलोग और श्री कृष्ण के अनुयायी आते है. यह विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा होती है.जगन्नाथ मंदिर से जुड़े अनेक रहस्य और मान्यताएँ आज भी विज्ञान युग को अचंभित कराती है. 

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