Monday, May 23, 2016

Scientific & Spiritual facts behind the Hindu temple

 मंदिर को जाने से लाभ तथा मंदिर से जुड़े कुछ वैज्ञानिक और आध्यात्मिक तथ्य 


हिन्दू के हर एक रीती-रिवाज में पीछे बहुत गहरा अर्थ छुपा हुआ है , आज जिसे पाश्चात्य लोग संशोधन कर रहे है. आध्यात्मिक तथा वैज्ञानिकता से कुछ पहलू को आज हम जानेंगे. भारत देश अपनी समृद्ध परंपरा और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। पूरे देश के हर कोने में हिंदू मंदिर प्रतिष्ठित है. ये मंदिर अलग-अलग भगवानों और देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व रखते  हैं हिन्दू धर्म में तेहतीस करोड़ देवी-देवता है ऐसा मानना है.

हर परिवार या समुदाय अपने-अपने इष् देवता की आराधना करता है, उन्हें पूजता है और उस के पूर्वजो द्वारा बताए गए रीती-रिवाजोका पालन करता है. हिंदू धर्म के अनुयायी भारी संख्या में मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं और मन को शांति , भगवान की कृपा-आशीर्वाद प्राप् करते हैंमंदिर से जुड़े हुए कुछ तथ्य को हम जानने की कोशिश करेंगे।

. भगवान की मूर्ति 

मंदिर में भगवान की मूर्ति को गर्भगृह में या मंदिर के बिल्कुल मध् स्थान पर स्थापित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर सबसे अधिक ऊर्जा होती है जहां सकारात्मक सोच से खड़े होने पर शरीर में अच्छी ऊर्जा पहुंचती है और नकारात्मकता को बाहर डाल देती है। हमेशा मूर्ति की स्थापना के बाद ही मंदिर का ढांचा खड़ा किया जाता है. जिसे प्राणप्रतिष्ठा कहते है यानी की भगवान की मूर्ति में प्राण- अपानादी पांच तत्वोंसे प्राण को आवाहित किया जाता है.  
 
Hindu temple, Facts Temple
Hindu Tempel & Facts

. मन्दिर से बाहर चप्पल उतारने के पीछे कारण 

आप दुनिया के किसी भी देश में हिंदू मंदिर में प्रवेश करें तो नंगे पैर ही करना पड़ता है. इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि मंदिर की फर्शों का निर्माण पुराने समय से अब तक इस प्रकार किया जाता है कि ये इलेक्ट्रिक और मैग्नैटिक तरंगों का सबसे बड़ा स्त्रोत होती हैं जब इन पर नंगे पैर से चला जाता है तो अधिकतम ऊर्जा पैरों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाती है। और चप्पल ऐसी वस्तु है जो की हम उसे सड़कोंपर , गंदे जगहपर, शौचालय के लिए ऐसे अनेक कामो में इस्तेमाल करते है. शुभ समय में उसे पहनने से मन को अशांति संकेत मिलता है  इसे वजह से हमें उसे मंदिर के बाहर छोड़ना अनिवार्य है

. मंदिर में घंटा बजाने के पीछे वैज्ञानिक कारण 

जब भी मंदिर में प्रवेश किया जाता है तो द्वार पर घंटा टंगा होता है जिसे बजाना होता है. मुख् मंदिर (जहां भगवान की मूर्ति होती है) में भी प्रवेश करते समय घंटा या घंटी बजानी होती है, इसके पीछे कारण यह है कि इसे बजाने से निकलने वाली मधुर ध्वनि से सात सेकेंड तक उसकी गूंज बनी रहती है जो शरीर के सात हीलिंग सेंटर्स को सक्रिय कर देती है. और इस ध्वनि को सुनने से नकारात्मक विचार मस्तिष्क से बाहर निकल जाते है!


. मूर्ति पूजा के समय कपूर जलाने के पीछे वैज्ञानिक कारण 

हर मंदिर में मूर्ति पूजा के समय कपूर जलाया जाता है, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि जब अंधेरे मंदिर में कपूर को जलाया जाता है तो दृष्टि के  इंद्रीय सक्रिय हो जाते है !

. दिये ( आरती) के ऊपर हाथ रखने के पीछे वैज्ञानिक कारण 

आरती के बाद सभी लोग दिए पर या कपूर से जले हुए आरती के ऊपर हाथ रखते हैं और उसके बाद उस ज्योत को अपने मुख या सिर से लगाते हैं और आंखों पर स्पर्श करते हैं. ऐसा करने से हल्के गर्म हाथों से दृष्टि के द्वारा मनुष्य के पांच कर्मेन्द्रिय सक्रिय हो जाती हैं और अचछा महसूस होता है।

. भगवान पर फूल चढ़ाने के पीछे कारण 

भगवान की मूर्ति पर फूल चढ़ाना हर मंदिर में स्वीकार्य होता है. फूलोंसे अलग-अलग तरह से भगवान के मूर्ति को अलंकृत किया जाता है. चढ़ाए हुए फूलोंसे  मंदिर और मंदिर के परिसर में अच्छी और भीनी-भीनी सी खुशबु मन को भाती है. और अगरबत्ती, कपूर और फूलों की खुशबु से सूंघने की शक्ति बढ़ती है और मन प्रसन् हो जाता है।

. चरणामृत पीने के पीछे वैज्ञानिक कारण

भगवान को नहलाए हुए जल को ताम्बे के या चांदी के बर्तन में जमा किया जाता है बाद में उसे  चरणामृत के तौर पर भक्तो को पीने के लिए दिया जाता है , इसमें दो तरह के चरणामृत होते है. और के पंचामृत जो की  पांच सामग्रियों (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर।  गंगाजल तथा तुलसी के पत्ते विकल्प है ) से मिलाकर  बनाया जाता है. इसके बाद, इसे ईश्वर को भोग लगाया जाता है और बाद में सभी दर्शानर्थियों को बांट दिया जाता है. जिस पात्र में इसे रखा जाता है वह चांदी का होता है और उसमें पड़ी हुई चम्मच भी चांदी की होती है. इसे पीने से जीह्वा की इंद्रियां सक्रिय हो जाती हैं और कई रोगों से मुक्ति दिलानेवाला यह अमृत कहलाया गया है !


 . मूल स्थान ( गर्भ गृह ) की परिक्रमा करने के पीछे वैज्ञानिक कारण 

हर मंदिर के मुख् मंदिर में दर्शन करने और पूजा करने के बाद परिक्रमा करनी होती है. परिक्रमा , या ११ बार करने की प्रथा है. जब मंदिर में परिक्रमा की जाती है तो सारी सकारात्मक ऊर्जा, शरीर में प्रवेश कर जाती है और मन को शांति मिलती है. हमारा ध्येय केंद्रित तथा भगवान के प्रति आकर्षित करने के लिए भगवान को मध्य स्थान में रखकर परिक्रमा की जाती है.
यहाँ  ऊपर दिए गए हर एक रीवाजोके के बारे में वैयक्तिक से विस्तृत जानकारी दी गयी है. जो अलग से लिखी गयी है. आप अधिक जानकारी के लिए उसे इसी ब्लॉग के द्वारा पढ़ सकते है.