The Conch plays a very important role in Hindu rituals. Also, there are a few interesting facts about the conch which you would be amazed to know.
शंख का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व
शंख का किस देवता से संबंध है? विष्णु जी को शंख सबसे प्रिय माना जाता है, शंख भगवन विष्णु का पांचवा शस्त्र है। इसे पांचजन्य शंख कहा जाता है , यह कृष्ण भगवान का आयुध है.
शंख की उत्पत्ति
शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक है। शंख की उत्पत्ति जल से ही होती है। जल ही जीवन का आधार है, सृष्टि की उत्पत्ति भी जल से हुई, इसलिये शंख हर तरह से पवित्र है, दुर्भाग्य से मुक्ती पाने का यह सबसे अच्छा तरीका है. विष्णु पुराण के अनुसार शंख लक्ष्मी जी का सहोदर भ्राता है। यह समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक है। शंख को विजय, समृध्दि, यश और शुभता का प्रतीक माना गया है.
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Dakshinavarti Shankh |
शङ्खं चन्द्रार्क दैव्यत्यं मध्ये वरुण दैवतं ! पृष्ठे प्रजापतिम विद्या अग्रे गंगा सरस्वती !!
त्रैलोक्ये यानि तीर्थानी वासुदेवस्य च आज्ञया ! शंखे तिष्ठन्ति सर्वाणि तस्मात् शङ्खं प्रपूजयेत !!
अर्थात :- शङ्खं में जैसे चन्द्र, सूर्य , वरुण देवता का वास होता है. शङ्खं के पृष्ठ स्थान में प्रजापति , और अग्र स्थान में गंगादि सरस्वती नदी का वास होता है. भगवान विष्णु के आज्ञा से शङ्खं में तीन लोकों के सभी तीर्थ समाएं हुए है. शंख में सभी देवताओंका वास होनेसे शंख की पूजा होती है!
शंख के प्रकार
वामवर्ती शंख :- जिसका उदर बायीं ओर खुलता हो तो वह वामावृत्त शंख कहलता है. अधिक लभ्य होनेवाला शंख इसे पूजा में , बजाने में तथा संगीत वाद्य जैसे कामो में इसका उपयोग होता है. यह शंख घर में रखनेसे सकारात्मक ऊर्जा , घर में शांति , अच्छा स्वास्थ्य का लाभ करता है !
दक्षिणावर्ती शंख :- शंख का उदर दक्षिण दिशा की ओर हो तो दक्षिणावृत्त होता है. यह मिलना दुर्लभ हैं, यह प्राप्त होना शुभ का संकेत कहा जाता है और यह सोए हुए नसीब को जगाता है भगवान कुबेर (धन के देवता) होने से यह शंख धन और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है!
गणेश शंख :- गणेश के सूंड जैसे दिखने वाले इस शंख को गणेश मुखी शंख कहते है, यह शंख घर में होने से बच्चो को पढ़ाई में सफलता , विघ्नोसे मुक्ति , बाधाओं का शमन होता है और बुरे प्रभाओंसे सुरक्षा मिलती है !
गौमुखी शंख :- गाय के मुख जैसा दिखनेवाले इस शंख को गौमुखी कहते है, गाय क हिन्दू धर्म में माता माना गया है. यह शंख घर में होने से पुण्य में अभिवृद्धि, तथा शांति बनी रहती है.अधिकतर इसे मंदिरों में देखा गया है !
कौड़ी या कौरी शंख :- अधिक नक़्शे बना हुआ एक मुद्रा जैसे दिखने वाले इस शंख को कौरी शंख कहते है। यह दुर्लभ है यह शिव तथा लक्ष्मी का स्वरुप माना जाता है ,आर्थिक अभिवृद्धि होने में यह लाभदाई है ,यह शंख पास में होनेसे बच्चोको बुरी बाधाओंसे बचाता है, कहा जाता है पुराने जमानेमे इसे मुद्रा के तहत इस्तेमाल किया जाता था.
शंख का महत्व
शंख का महत्व
शंख को पवित्रता का प्रतीक माना गया है, यह हर एक हिन्दु के घर में पूजा के स्थान पर रखा जाता है। इसे साफ लाल रंग के कपड़े में लपेट कर मिट्टी के बर्तन पे रखते हैं. आमतौर पर पूजा अनुष्ठान के वक़्त शंख में पानी रखतें हैं, जो पूजा के बाद पूरे घर में छिड़का जाता है.
शंख ध्वनि की परंपरा आज भी समाज में पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ और आरती के अवसरों पर महत्वपूर्ण मानी जाती है। शंख की घर में स्थापना करने से लक्ष्मी वास होता है और यह भगवान विष्णु का प्रिय है। शंख निधि का प्रतीक है, ऐसा माना जाता है कि शंख को पूजा स्थल में रखने से अरिष्टों एवः अनिष्ठो का नाश होता है और सौभाग्य में वृद्धि होती है.
अर्थवेद के अनुसार "शंखेन हत्वा रक्षांसि" अर्थात शंख से सभी राक्षसों का नाश होता है और यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का ह्रदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। यजुर्वेद में ही यह भी कहा गया है कि
अर्थवेद के अनुसार "शंखेन हत्वा रक्षांसि" अर्थात शंख से सभी राक्षसों का नाश होता है और यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का ह्रदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। यजुर्वेद में ही यह भी कहा गया है कि
यस्तु शंखध्वनिं कुर्यात्पूजाकाले विशेषतः! वियुक्तः सर्वपापेन विष्णुनां सह मोदते !!
अर्थात- पूजा के समय जो व्यक्ति शंख-ध्वनि करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान विष्णु के साथ आनंद करता है.
तानसेन ने अपने आरंभिक दौर में शंख बजाकर ही गायन शक्ति प्राप्त की थी. अथर्ववेद के चतुर्थ अध्याय में शंखमणि सूक्त में शंख की महत्ता वर्णित है. भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हुआ है, गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वद्धक और समृद्धि दायक कहा गया है
शंख की घर में स्थापना करने से लक्ष्मी वास होता है और यह भगवान विष्णु का प्रिय है. इसे विजय व यश का प्रतीक माना जाता है, इसमें पांच उंगलियों की आकृति होती है. घर को वास्तु दोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है , यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है.
शंख के वैज्ञानिक पहलू
यदि इसे वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो पता चलता है कि शंख की ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक स्थित अनेक बीमारियों के कीटाणुओं के ह्दय दहल जाते हैं, और वे मूर्छित हो-होकर नष्ट होने लगते हैं. प्रख्यात वैद्य बृहस्पति देव त्रिगुणा के अनुसार प्रतिदिन शंख फूकने वाले को सांस से संबंधित बीमारियां जैसे-दमा ( अस्थमा) एवं फेफड़ों के रोग नहीं होते. इसके अलावा कई अन्य बीमारियों जैसे -प्लीहा व यकृत से संबंधित रोगों तथा इनफ्लुएंज आदि में शंख-ध्वनि अत्यंत लाभप्रद है। डॉ जगदीश चंद्र बसु जैसे भारतीय वैज्ञानिकों ने भी इसे सही माना है.
अतः प्रातः व सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज होती हैं, तभी शंख-ध्वनि करने का विधान है, इससे आसपास का वातावरण तथा पर्यावरण शुद्ध रहता है, आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियाँ, पीलिया, कास प्लीहा यकृत, पथरी आदि रोग ठीक होते हैं.
अतः प्रातः व सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज होती हैं, तभी शंख-ध्वनि करने का विधान है, इससे आसपास का वातावरण तथा पर्यावरण शुद्ध रहता है, आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियाँ, पीलिया, कास प्लीहा यकृत, पथरी आदि रोग ठीक होते हैं.
ऋषि श्रृंग की मान्यता है कि छोटे-छोटे बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बाँधने तथा शंख में जल भरकर अभिमंत्रित करके पिलाने से वाणी-दोष नहीं रहता है, बच्चा स्वस्थ रहता है. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक एवं श्वास रोगी हमेशा शंख बजायें तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं. आयुर्वेदाचार्य Dr.Vinod Varma के अनुसार रूक-रूक कर बोलने व हकलाने वाले यदि नित्य शंख-जल का पान करें, तो उन्हें आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा. दरअसल मूकता व हकलापन दूर करने के लिए शंख-जल एक महौषधि है.
हृदय रोगी के लिए यह रामबाण औषधि है। दूध का आचमन कर कामधेनु शंख को कान के पास लगाने से `ॐ' की ध्वनि का अनुभव किया जा सकता है, शंख के ध्वनि से वातावरण में सात्विकता सकारात्मक विचार बढ़ते है, मन को शांति तथा मन हलका सा होने की अनुभूति होती है , यह सभी मनोरथों को पूर्ण करता है.
हृदय रोगी के लिए यह रामबाण औषधि है। दूध का आचमन कर कामधेनु शंख को कान के पास लगाने से `ॐ' की ध्वनि का अनुभव किया जा सकता है, शंख के ध्वनि से वातावरण में सात्विकता सकारात्मक विचार बढ़ते है, मन को शांति तथा मन हलका सा होने की अनुभूति होती है , यह सभी मनोरथों को पूर्ण करता है.
1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने कि उत्तम औषधि है.
महाभारत में युद्ध के आरंभ, युद्ध के एक दिन समाप्त होने आदि मौकों पर शंख -ध्वनि करने का जिक्र आया है. इसके साथ ही पूजा आरती, कथा, धार्मिक अनुष्ठानों आदि के आरंभ व अंत में भी शंख -ध्वनि करने का विधान है, शंख निधि का प्रतीक है, ऐसा माना जाता है कि शंख को पूजा स्थल में रखने से अरिष्टों एवः अनिष्ठो का नाश होता है और सौभाग्य में वृद्धि होती है. इसके पीछे धार्मिक आधार तो है ही, वैज्ञानिक रूप से भी इसकी प्रामाणिकता सिद्ध हो चुकी है.वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख-ध्वनि के प्रभाव में सूर्य की किरणें बाधक होती हैं.
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, पूजा के समय Shankh में जल भरकर देवस्थान में रखने और उस जल से पूजन सामग्री धोने और घर के आस-पास छिड़कने से वातावरण शुद्ध रहता है. क्योकि शंख के जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भूत शक्ति होती है. साथ ही शंख में रखा पानी पीना स्वास्थ्य और हमारी हड्डियों, दांतों के लिए बहुत लाभदायक है. शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ मौजूद होते हैं. इससे इसमें मौजूद जल सुवासित और रोगाणु रहित हो जाता है. इसीलिए शास्त्रों में इसे महाऔषधि माना जाता है.
चलिये पौराणिक कथाओं से हट कर शंख के बारे में आपको कुछ बताते है, शंख को कभी आपने कान के पास लेके जाएं आपको समुद्र कि ध्वनि ओंकार के नाद जैसे सुनाई पड़ती है !