Friday, June 17, 2016

Kalash importance in Pooja

     कलश का महत्व

             क्यों कलश की पूजा की जाती है ? क्या कहते है शास्त्र तथा विज्ञान 

कलश जब पूजा-पाठ, या गृहप्रवेश की बात आती है तब हम पहले कलश के बारे में सोचते है या कलश का जिक्र किया जाता है , शादी के रस्म में , मंदिर प्रतिष्ठापना के बारह वर्ष पूर्ण होनेपर जिसे कुम्भाभिषेक कहते है जिसे कलश को पूजा की जाती है उस कलश से मंदिर के कलश या शिखर को अभिषेक किया जाता है. यह पूजा विशेष तरह से होती है. शादी के बाद वधु पहलीबार वर के घर प्रवेश करते समय भी चावल या धान्य के कलश को लांघकर आती है जिसे वधुप्रवेश कहा जाता है.

ऐसे अनेक शुभ कार्यो में कलश का इस्तेमाल  किया जाता है क्यों की उसे शुभ तथा मंगल का प्रतीक माना गया है.  वैसे तो हिन्दू धर्म के हर एक पूजा में कलश की पूजा या कलश की  स्थापना की जाती है . तो चलो जान लेते है कलश की उत्पत्ति के बारे में.
कलश का जिक्र  वेदो में भी किया गया है उस मंत्र की शुरुवात कुछ ऐसी है:-
“आ कलशेषु धावति " ( ऋग्वेद)
“आ कलशेषु धावति श्येनो वर्म " ( यजुर्वेद )

कलश की उत्पत्ति 

जब देव-दानव द्वारा सागर का मंथन हुआ तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर समुद्र से अमृत से भरा कलश लेकर अवतरित हुए. उसी बार प्रथमत: कलश को देखा गया ऐसा पुराण से ज्ञात होता है  इस प्रकार कलश भी अमरत्व तथा शुभ का प्रतीक माना जाता है.

Brass Pot ( Kalash)


कलश मंत्र पुराण में :-

                         कलशस्य मुखे विष्णु : कण्ठे रूद्र समाश्रित : !             
              मूले तत्र स्तिथो ब्रम्हा मध्ये मात्र गणा स्मृता: !!
          कुक्षौ तौ सागरसर्वे सप्तद्वीपा वसुंधरा  ! 
        ऋग्वेदोथ यजुर्वेदो सामवेदो अथर्वण : !!
         अंगैश्च सहितासर्वे कलशान्तु समाश्रिता: !
        आयान्तु देव पूजार्थं दुरित क्षय कारका: !!

अर्थात :- कलश के मुख़ में विष्णु , कंठ में शिव जी और कलश के मूल स्थान में ब्रम्हा जी तथा कलश के मध्यस्थान में मातृ गण देवियाँ रहती है जैसे की ब्राम्ही, माहेश्वरी, कौमारी इत्यादि , और कलश के कोख  में सारे सागर, सात द्वीप और माता पृथ्वी विराजमान है, इतनाही नहीं कलश में चार वेद समाये हुए है.  इन मंत्रो द्वारा भगवान की प्रार्थना करके कलश में भगवान को बुलाया जाता है. कलश की पूजा से सभी बाधा, रोग, और  पाप दूर होते है. इसीलिए कलश की पूजा हरएक पूजा के प्रारम्भ में की जाती है.
इस महान स्तुति से ही ज्ञात होता है की कलश की महत्वता कितनी है. इन महान वाक्यों द्वारा कलश की महिमा गायी गयी है.  
नवरात्रों में विशेष कलश की पूजा की जाती है जो पूजा 9 दिनोंतक चलती है. कई परम्पराओंके अनुसार माँ दुर्गा को कलश में आवाहित किया जाता है.

इन दिनों कलश की विशेष पूजा की जाती है दक्षिण भारत में कलश में सभी भगवान को आवाहित करके पूजा-पाठ किया जाता है. जिसे घटस्थापना कहते है,
कलश का शाब्दिक अर्थ है - घड़ा, हिन्दू धर्म में सभी कर्मकांडों के समय इसका उपयोग किया जाता है. सामान्यत: कलश मिट्टी, Silver, पीतल , या ताम्बे का होता है जिसे  कुम्भ, घट भी कहा जाता है. कलश में जल देवता वरुण भगवान को आवाहित करके पूजा की जाती है. कारण जल ही हमारे जीवन का स्रोत है , जल के बिना हम जी नहीं पाते. इतनाही नहीं कलश के अंदर आम के पत्ते , पान के पत्ते , या पीपल के पत्ते डालकर कलश को लाल या पिले धागे से लपेटकर कलश पर नारियल रखा जाता है तबजाके कलश पूजा के लिए अलंकृत होता है. तब वह कलश पूर्ण कुम्भ या पूर्ण कलश नाम से जाना जाता है!

कलश के कुछ रोचक  तथ्य 

* कलश:- प्रतीकात्मक सृजन का प्रतिनिधित्व करता है, खाली बर्तन, पृथ्वी का प्रतीक है,
* कलश में का पानी:- पानी मौलिक प्रतीक है , पानी से ही  पृथ्वी पर जीवन शुरू किया गयापानी के बिना इस दुनिया में कुछ भी  मौजूद नहीं  कर सकते हैं. यह  जीवन का दाता है और असंख्य नामों और रूपों, अक्रिय वस्तुओं और संवेदनशील प्राणी बनाने की क्षमता रखता है और पूरे विश्व को उर्जा देता है. यजुर्वेद में कहा गया है  " आपो वै सर्वा देवता: " पानी में ही सब भगवान समाये हुए है.
* आम के पत्ते :- सृजन का प्रतिनिधित्व करते है, प्रकृति का संकेत सदा खुश, आनंद से रहनेके सीख मिलती है.
* नारियल:-  पूर्णत्व का प्रतिनिधित्व करता है, कलश पर नारियल रखनेके बाद ही वह पूर्ण कुम्भ कहलाता है, मनुष्य के सिर का प्रतीक.
* कलश का धागा :-  प्रेम प्रतिनिधित्व करता है, जो की एक-दूसरे से प्रेम, से बांधे रखता है, मिल-जुल के रखनेके की सीख देता है.

वैज्ञानिक कारण

* कलश ऊर्जा का स्रोत है और भावनात्मक, शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक ताकत को बढ़ाता है.
* कलश के अंदर का पानी मंत्रो द्वारा तथा दिव्य औषधियों का इस्तेमाल करके शुद्ध करनेके लिए लम्बे समय की अवधि तक रखा जाता है जिससे कलश में दिव्य ऊर्जा , और औषध के गुण उत्पन्न होते है
* जल का उपयोग :- आसपास का वातावरण शुद्धि के लिए उस जल का इस्तेमाल किया जाता है , तथा  शरीर में स्थित रोग, व्याधि को दूर करनेके लिए जल पान किया जाता है जिसे तीर्थ या चरणामृत कहते है.
* सकारात्मक बुद्धि तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह हररोज सेवन किया जाता है , कर सकते है.
* ताम्बे के कलश या बर्तन में का पानी के सेवन से अनेक तरह के रोग दूर हो जाते है, रक्त के कण में सत्विकता तथा निरोगता बढती है.
* पानी को रात भर या कम-से-कम चार घंटे तक तांबे के बर्तन में रखें तो यह तांबे के कुछ गुण अपने में समा लेता है. यह पानी खास तौर पर आपके लीवर की देखभाल के लिए और आम तौर पर आपकी सेहत और शक्ति-स्फूर्ति के लिए उत्तम होता है.