Wednesday, June 08, 2016

Scientific facts hidden behind Hindu wedding ritual

शादी की रस्मों के पीछे छुपे वैज्ञानिक रहस्य

स्त्री हो या पुरुष शादी एक महत्वपूर्ण रस्म मानी गयी ही जो एक बार ही की जाती है. वर-वधु एक दूसरे साथ जीवनभर साथ रहनेकी कस्मे खाते है. शादी एक बहुत जटिल तथा विश्लेषणीय विषय है. हर एक रस्म, रीति-रिवाज अनेक माईने रखते है, हर एक रस्म के पीछे वर-वधु का लाभ और आध्यात्मिक तथा वैज्ञानिक कारण छुपा हुआ है.
भारतीय शादियों में कई रस्में निभाई जाती है. हालाँकि कई लोग ऐसा मानते हैं कि ये रस्में केवल अंधविश्वास हैं परंतु आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि इनमें से कई रस्मों के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है.

भारतीय शादियों में मेहंदी लगाने का महत्व जैसे जैसे वैज्ञानिक इन पारंपरिक रस्मों की गहराई में गए उन्होंने देखा कि इन रस्मों के साथ तर्क और विज्ञान जुड़े हुए हैं. भारतीय शादियों में निभाई जाने वाली इन रस्मों का उद्देश्य शरीर, दिमाग और आत्मा के बीच पवित्र संबंध स्थापित करना है.


भारतीय शादियों की महत्वपूर्ण मान्यताएं 

तो वे सभी लोग जो इन रस्मों के महत्व और प्रासंगिकता पर आश्चर्य करते हैं, उनके लिए यह बताना आवश्यक है कि इन रस्मों को निभाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण है. हमें पूरा विश्वास है की आप ने शादी के पीछे छुपे हुए इन वैज्ञानिक कारण के बारे में कभी नहीं पढ़ा या सुना होगा. तो जानिए इन तथ्यों को जो आप को अचंभित कर देंगी.

विवाह की रस्में हल्दी-उबटन और मेहंदी से शुरू होती हैं. इसमें वर और वधु को विवाह के लिए आकर्षक निखार दिया जाता है. दोनों को हल्दी चन्दन आदि का लेप लगाकर घर की महिलायें सुगन्धित जल से स्नान कराती हैं. इसका उद्देश्य यह है कि वे दोनों विवाह के दिन सबसे अलग सुन्दर दिखें. इसके साथ ही इसमें विवाहोपरांत कायिक इच्छाओं की पूर्ति हो जाने की अभिस्वीकृति भी मिल जाती है. भारत में मेहंदी का आगमन अरब संपर्क से हुआ है. इसके पहले बहुसंख्यक हिन्दू आलता लगाकर अपने हाथ और पैरों को सुन्दर लाल रंग से रंगते थे.   
शादी के रस्मे 

            मेहंदी लगाना

मेहंदी में शांतिदायक और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं. इसमें ठंडक प्रदान करने का गुण होता है जो वर वधू को तनाव, सिरदर्द और बुखार से आराम दिलाता है. यह नाखूनों की वृद्धि में भी सहायक होता है और क्या? मेंहदी कई प्रकार के वायरल और फंगल इन्फेक्शन (संक्रमण) से रक्षा करने में भी सहायक होती है.
हल्दी लगाना पारंपरिक रूप से हल्दी का उपयोग वर वधू के चेहरे पर प्राकृतिक निखार लाने के लिए किया जाता है.
 इसके पीछे एक अन्य पारंपरिक कारण वर वधू को बुरी नज़र से बचाना होता है. यदि इस रस्म के पीछे वैज्ञानिक कारण की बात करें तो आप जानते ही हैं कि हल्दी को चमत्कारिक जडी बूटी कहा जाता है क्योंकि इसमें बहुत सारे औषधीय गुण होते हैं. और इस प्रकार इस पूरी प्रक्रिया में शरीर को हल्दी का उत्तम औषधीय लाभ मिलता है. हल्दी त्वचा के बैक्टीरिया को नष्ट कर देती है तथा वर वधू पर निखार लाती है. आमतौर पर हल्दी में तेल मिलाकर पेस्ट बनाया जाता है।


चूड़ियाँ पहनना

वैज्ञानिक कारण:- चूड़ियाँ कलाईयों में पहनी जाती हैं. कलाईयों में कई एक्युप्रेशर पॉइंट्स होते हैं. चूड़ी पहनने पर इन पॉइंट्स पर दबाव पड़ता है जो आपको स्वस्थ रखने में सहायक होता है. चूड़ियों और आपकी त्वचा के बीच होने वाला घर्षण रक्त के परिसंचरण में सुधार लाता है. चुडियोंकी की आवाज़ उनके प्रति हर किसी का ध्यान खींचती है. ज्यादातर महिलाओं को चूड़ियां या कंगन पहनने के लिए करते हैं चूड़ियाँ भी विवाह का प्रतीक माना जाता है!

अध्यात्म तथा आयुर्वेद और मान्यता 

शारीरिक रूप से, आम तौर पर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमजोर माना जाता हैं. उनकी हड्डिया पुरुषों के  तुलना में भी कमजोर हैंमहिलाओं को चूड़ियां पहनने के लिए और है कि उन्हें शक्ति प्रदान करने के लिए मुख्य कारण है.
आज, ज्यादातर महिलाओं को चूड़ियां पहनते  नहीं देखा है. यही कारण है कि महिलाओं की एक बड़ी संख्या में कमजोरी और शारीरिक शक्ति की कमी महसूस करते देखा हैं. वे जल्दी थकान का अनुभव और गंभीर बीमारियों के लिए उन्हें प्रभावित करते हैं। जबकि वहाँ पुराने महिलाओं के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं थी. उनके भोजन की आदतें और अनुशासन उन्हें स्वस्थ रखता था.

सोने और चांदी के गहने महिलाओं को अधिक से अधिक ऊर्जा प्रदान करते हैं. सोने और चांदी की चूड़ियां हाथ की हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करते हैं
सोने और चांदी के घर्षण के कारण, उन धातुओं के गुणों को अपने शरीर में प्रवेश करनेमे मदत मिलती है  जिससे शरीर स्वस्थ्य रहनेमें सहायता मिलती है. आयुर्वेद में भी इन आभूषणों की राख को शरीर में ऊर्जा प्रदान करने के लिए प्रयोग किया जाता है. यही कारण है कि पुरानी पीढ़ी की महिलाओं को लंबे समय तक जीवन का आनंद लेने के लिए चुडियोंका इस्तेमाल किया और उनकी मृत्यु के समय तक काम करने में सक्षम बनाया.
एक धार्मिक विश्वास से जुड़ी यह बात है कि उन महिलाओं को जो चूड़ियां पहनती है उनके अपने पति की आयु में वृद्धि होती है. वहाँ चूड़ियों की आवाज में एक रहस्य छिपा है. माना जाता है की चुडियोंकी आवाज नकारात्मक शक्ति को भगाती है और तो और एक सुमधुर आवाज उत्पन्न कराती है जिसको सुननेसे मनको शांति  मिलती है !                                                                                                             

 मांग में सिन्दूर भरना

पारंपरिक हिंदू समाज में, सिंदूर लगाना विवाहित हिंदू महिलाओं के लिए जरूरी माना जाता है यह सौभाग्य का प्रतीक मानते है.
विवाहित महिलाओं द्वारा सिंदूर लगानेकी की परंपरा के विषय में भारतीय पौराणिक कथाओं में विस्तार से बताया गया है.धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, लाल शक्ति का रंग है, ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है. सती और पार्वती देवी का स्वरुप माना गया है. सती एक आदर्श हिन्दू पत्नी मानी जाती है क्योंकि वह अपने पति के सम्मान के लिए उसके जीवन का त्याग किया. हिंदुओं का मानना है कि देवी पार्वती की कृपा से महिलाओंको आजीवन अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. हिंदू स्त्री के लिए शादीशुदा होने की निशानी होने के अलावा सिन्दूर के कुछ स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं. इसमें हल्दी, चूना, कुछ धातु और पारा होता है. जब वधू की मांग में सिन्दूर भरा जाता है तो पारा शरीर को ठंडा करता है तथा शरीर को आराम महसूस होता है।

सिंदूर किसी के माथे पर जहां आज्ञा चक्र या ब्रह्म स्थान पर सिर के मध्य भाग में सिंदूर लगाया जाता है. इस बिंदु को महत्वपूर्ण और संवेदनशील माना जाता है. इस जगह सिंदूर लगाने से दिमाग  हमेशा सतर्क और सक्रिय रहता है  दरअसल, सिंदूर में मरकरी होता है, ये अकेली ऐसी धातु है, जो तरल (लिक्विड) रूप में पाई जाती है. यही वजह है कि सिंदूर लगाने से शीतलता मिलती है और दिमाग तनावमुक्त रहता है. दिमाग को शांत और व्यवस्थित रखना जरूरी हो जाता है. इससे उनमें यौन इच्छा भी उत्पन्न होती है. और यही कारण है कि विधवा या कुंआरी स्त्रियों को सिन्दूर लगाने की अनुमति नहीं है. इसलिए सिंदूर लगाने की प्रथा बनाई गई है .

बिछुए पहनना

अनेक संस्कृतियों में हिंदू दुल्हनों को पैर की दूसरी उंगली में रिंग पहनना अनिवार्य होता है. पैर की अंगुली के बिछुए (रिंग) इन दिनों कई महिलाओं द्वारा पहने जाते हैं. दरअसल,यह एक भारतीय परंपरा का हिस्सा है. विवाहित भारतीय महिला इसे पहनती है यह प्रथा शादी से शुरुवात होती है जिस दिन पतिद्वारा पहली बार पहनाए जाती है.
यह प्रथा महिलाओंके स्वास्थ्य के लिए की गयी है ऐसा ज्ञात होता है. इसे पहननेसे उनके प्रजनन और गर्भाशय से जुड़े स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदत करता है. परन्तु इसके पीछे भी दो वैज्ञानिक कारण हैं. पहला यह कि पैर की दूसरी उंगली में एक विशेष नस होती है जो गर्भाशय से गुज़रती है तथा हृदय तक जाती है. बिछुए गर्भाशय को मज़बूत बनाते हैं तथा मासिक धर्म के चक्र को नियमित करते हैं. दूसरा, ये बिछुए चांदी के बने होते हैं जो ध्रुवीय उर्जा को पृथ्वी से शरीर में स्थानांतरित करती है.

 सात फेरे पवित्र अग्नि के

वर वधू जिस पवित्र अग्नि के चारों ओर फेरे करते हुए अपने वचन लेते हैं उसका भी विशेष महत्व है. अग्नि आसपास के वातावरण को शुद्ध करती है. यह नकारात्मक उर्जा को दूर करती है सकारात्मकता फैलाती है. जब विभिन्न प्रकार के घटक जैसे विभिन्न प्रकार की लकडियाँ, घी, चांवल तथा अन्य वस्तुएं इसमें डाली जाती हैं तो यह एक शक्तिशाली शुद्धिकारक बन जाती है. उस शुद्ध वातावरण में जो भी लोग उपस्थित होते हैं उनके स्वास्थ्य पर इसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से उस जोड़े पर जो इसके सबसे अधिक नज़दीक होते हैं. और आपस में एक-दूसरे के प्रति अच्छे विचार निर्माण होते है जो विवाह के उपरांत जीवनभर साथ निभानेमे मदत मिलती है !