जानिए स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य देनेवाला वट-सावित्री व्रत के बारे में
सावित्री और सत्यवान की कथा सबसे पहले महाभारत के वनपर्व में मिलती है। जब युधिष्ठिर मार्कण्डेय ऋषि से पूछ्ते हैं कि क्या कभी कोई और स्त्री थी जिसने द्रौपदी जितनी अपने पतिसे भक्ति प्रदर्शित की?
तब मार्कण्डेय ऋषि कहते है :-
सावित्री प्रसिद्ध तत्त्वज्ञानी राजर्षि अश्वपति की एकमात्र कन्या थी। अपने वर की खोज में जाते समय उसने निर्वासित और वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान् को पतिरूप में स्वीकार कर लिया। जब देवर्षि नारद ने उनसे कहा कि सत्यवान् की आयु केवल एक वर्ष की ही शेष है तो सावित्री ने बडी दृढता के साथ कहा- जो कुछ होना था सो तो हो चुका। माता-पिता ने भी बहुत समझाया, परन्तु सती अपने धर्म से नहीं डिगी!