नवरात्रि
का त्यौहार पूरे
भारत वर्ष में
मनाया जाता है
विशेषकर दुर्गा पूजा , काली
पूजा , चंडी पूजा
इन नामोसे अलग-अलग प्रान्तों
में और अलग-अलग प्रथा
के अनुसार आराधना
की जाती है
नवरात्रि का त्यौहार
सप्टेंबर माह के
अंत में या
अक्टूबर माह के
प्रारम्भ में शुरू
होता हिन्दू पंचांग
के अनुसार आश्विन
माह के शुक्ल
प्रतिपदा से शुरुवात
होती है. प्रतिपदा
से लेकर नवमीतक
और दशमी का
दिन विजय का
दिन कहा जाता
है जिसे विजयादशमी
दशहरा कहते है
क्यों की इस
दिन प्रभु श्रीराम
ने रावण का
वध किया था
और माँ दुर्गा
ने महिषासुर का
संहार किया था
!
Wednesday, October 05, 2016
Sunday, September 25, 2016
श्राद्ध के दौरान क्यों कौओ को खिलाया जाता है?
कौआ, गाय और यमुना नदी की कथा
राजा
दशरथ के मृत्यु
के समय प्रभु
श्रीराम, सीता और
लक्ष्मण वन में
थे इस कारणवश
श्रीराम को अपने
पिता दशरथ महाराज
का किसी प्रकार
का कार्य करने
को नहीं मिला।
रावण का वध
होने के बाद
श्रीराम ने राज्य
को संभाला. एकबार
सीता और प्रभु
श्रीराम वन में
विहार करते समय
आकश से एक
यक्ष तालाब में
गिरता है और
श्रीराम से कहने
लगता है की
राजा दशरथ जी
को मोक्ष नहीं
मिला क्योंकि उनका
क्रिया-कर्म ठीक
से नहीं हुआ.
यक्ष के वचन
सुनकर श्रीराम अपने
पिता दशरथ का
श्राद्ध करनेकी तैयारियां करनेकी
आज्ञा देते है.
Wednesday, September 21, 2016
भाद्रपद
माह के कृष्ण
प्रतिपदा से श्राद्ध
शुरू होते है यानी September के महीने में, उन 15 दिनों
को पितृपक्ष या
महालय भी कहा जाता
है, जो की
विशेषरूप से पितरोंके
लिए माने जाते
है. इन 15 दिनों में
मृत माता-पितरोंका
श्राद्ध, दान-धर्म,
तर्पण, पिण्डप्रदान किया जाता
है, कहा जाता
है ऐसा करनेसे
पितरोंको मुक्ति मिलती है
तथा उनका आशीर्वाद
बना रहता है.
Monday, August 29, 2016
अग्नि की महत्ता तथा हवन (अग्निहोत्र) से लाभ
हमारे
हिन्दू परंपरा में हर
एक पूजा में
हवन करनेकी प्रथा
हजारो सालोंसे चलती
आ रही है
, कही पे शांति
हवन, तो कही
पे शुद्धि हवन
और तो कही
पे लोक कल्याण
यज्ञ या हवन
किया जाता है.
हवन, होम,
यज्ञ, याग इन
अलग-अलग नामोसे
अग्नि भगवान् को
जाना जाता है.
विशेषकर नवरात्र, दीपावली, गृहपूजा
और नवोग्रहों की
पीड़ा दूर करनेके
लिए वैसे उत्तर
तथा दक्षिण भारत
में हर
एक पूजा
के बाद हवन
करते है.
Wednesday, August 17, 2016
क्यों हम शनिवार को हनुमान जी की पूजा करते है ?
ऐसा देखा गया
है की शनिवार
आते ही भक्त
लोग हनुमान के
मंदिर को जाते
है तेल , फूल,
फल आदि चढ़ाके
हनुमान चालीस पढ़ते है
,पूजा करते है
और शक्तिनुसार परिक्रमा
करते है. आज
भी देखा गया
है हर एक
गाव के सीमापर
एक हनुमान का
मंदिर होता है
कहते है हनुमान
जी रक्षा करते
है उस गाव
की जिस गाव
के सीमापार हनुमान
जी का मंदिर
होता है.
Tuesday, August 09, 2016
मंदिर की रचना
देवालय की वास्तु तथा नियम
मंदिर के वास्तु को ३ विभागोंमें बाटा है. उत्तर हिमालय से विंध्य पर्वत तक नागर शैली नाम से , विंध्य पर्वत से कृष्णा नदी तक वेसर शैली नाम से और तीसरी द्राविड़ शैली नाम से जानी जाती है. उत्तर की वास्तु शैली को काश्यप वास्तु और दक्षिण वास्तु शैली को भृगु संहिता वास्तु के नाम से जाने जाते है. इनके तहत जो मध्यम वास्तु है जिसे कृष्णा नदी तक है वह वास्तु नागर और द्राविड़ वास्तु का प्रतिनिधित्व रखता है.